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२, ४, ८] णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमे गदिमग्गणा
[ ३९१ ४. णाणाजीवेहि भंगविचओ णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमेण गदियाणुवादेण णिरयगदीए णेरइया णियमा अस्थि ॥१॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयानुगमसे गतिमार्गणाके अनुसार नरकगतिमें नारकी जीव नियमसे हैं ॥ १॥
. विचय शब्दका अर्थ विचार होता है । इससे यह समझना चाहिये कि इस प्रकरणमें नाना जीवोंकी अपेक्षा सामान्य और विशेष रूपसे गति आदि चौदह मार्गणाओंमें जीवोंके अस्तित्व
और नास्तित्वरूप दोनों भंगोंका विचार किया जानेवाला है । तदनुसार यहां सर्वप्रथम नरकगतिमें सामान्यरूपसे नारकियोंके अस्तित्व-नास्तित्वका विचार करते हुए यह निर्दिष्ट किया गया है कि नारकी जीव सदा ही रहते हैं, उनका अभाव कभी नहीं होता ।
एवं सत्तसु पुढवीसु णेरइया ॥ २ ॥ इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें नारकी जीव नियमसे हैं ॥ २ ॥
तिरिक्खगदीए तिरिक्खा पंचिंदिय-तिरिक्खा पंचिंदिय-तिरिक्ख-पज्जत्ता पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणी पंचिंदियतिरिक्ख-अपज्जत्ता मणुसगदीए मणुसा मणुस-पज्जत्ता मणुसणीओ णियमा अत्थि ॥ ३ ॥
तिर्यंच गतिमें तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त; तथा मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी नियमसे हैं ॥ ३ ॥
मणुसअपज्जत्ता सिया अत्थि, सिया णत्थि ।। ४ ।। मनुष्य अपर्याप्त कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं ॥ ४ ॥ देवगदीए देवा णियमा अस्थि ।। ५ ॥ देवगतिमें देव नियमसे हैं ॥ ५ ॥ एवं भवणवासियप्पहुडि जाव सबट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवेसु ॥ ६ ॥
इसी प्रकार भवनवासियोंसें लेकर सर्वार्थसिद्धि-विमानवासियों तक देवोंका शाश्वतिक अस्तित्व जानना चाहिये ॥ ६ ॥
इंदियाणुवादेण एइंदिया बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता णियमा अस्थि ॥७॥ इन्द्रियमार्गणाके अनुसार एकेन्द्रिय, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त व अपर्याप्त जीव नियमसे हैं ॥७॥ बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदिय-पंचिंदिय-पज्जत्ता अपज्जत्ता णियमा अत्थि ॥ ८॥
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