________________
२, ५, ८८] दव्वपमाणाणुगमे जोगमग्गणा
[ ४०१ खेत्तेण असंखेज्जाणि पदराणि ॥ ७७॥ लोगस्स संखेज्जदिभागो ॥ ७८ ॥
बादर वायुकायिक पर्याप्त जीव क्षेत्रकी अपेक्षा असंख्यात जगप्रतर प्रमाण हैं ॥ ७७ ॥ उन असंख्यात जगप्रतरोंका प्रमाण लोकका असंख्यातवां भाग है ॥ ७८ ॥
वणप्फदिकाइय-णिगोदजीवा बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ७९ ॥
वनस्पतिकायिक जीव, निगोद जीव, वनस्पतिकायिक बादर जीव, वनस्पतिकायिक बादर पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक बादर अपर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म पर्याप्त जीव, वनस्पतिकायिक सूक्ष्म अपर्याप्त जीव, बादर निगोद जीव, सूक्ष्म निगोद जीव, बादर निगोद जीव पर्याप्त, बादर निगोद जीव अपर्याप्त, सूक्ष्म निगोद जीव पर्याप्त और सूक्ष्म निगोद जीव अपर्याप्त; ये प्रत्येक जीव राशियां द्रव्यप्रमाणसे कितनी हैं ? ॥ ७९ ॥
अणंता ।।८०॥ अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥
उपर्युक्त प्रत्येक जीवराशि द्रव्यप्रमाणसे अनन्त है ॥ ८० ॥ वे प्रत्येक जीव राशियां कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे अपहृत नहीं होती हैं ॥ ८१ ॥
खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ ८२ ॥ उपर्युक्त प्रत्येक जीवराशि क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोक प्रमाण है ॥ ८२ ॥ तसकाइय-तसकाइयपज्जत्त-अपज्जत्तापंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्त-अपज्जत्ताणभंगो॥
त्रसकायिक, त्रसकायिक पर्याप्त और त्रसकायिक अपर्याप्त जीवोंका प्रमाण क्रमशः पंचेन्द्रिय, पंचेन्द्रिय पर्याप्त और पंचेन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके समान है ॥ ८३ ॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगी तिण्णिवचिजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ८४ ॥
योगमार्गणानुसार पांच मनोयोगी और सत्य; असत्य व उभय ये तीन वचनयोगी जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ८४ ॥
देवाणं संखेज्जदिभागो ॥ ८५ ॥
पांचों मनोयोगी और उक्त तीन वचनयोगी जीव द्रव्यप्रमाणसे देवोंके संख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ ८५ ॥
वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगी दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ ८६ ॥ वचनयोगी और असत्यमृषा (अनुभय) वचनयोगी द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ।। ८६ ॥
असंखेज्जा ॥ ८७॥ असंखेज्जासंखेज्जाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ ८८॥ छ. ५१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org