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४०८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ६, ६ .. पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्ता पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणी पंचिंदियतिरिक्ख-अपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादण केवडिखेत्ते ? ॥६॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव स्वस्थान, समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ६॥
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥७॥ उपर्युक्त चार प्रकारके तिर्यंच उक्त पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं। मणुसगदीए मणुसा मणुसपज्जत्ता मणुसिणी सत्थाणेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥
मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी स्वस्थान व उपपाद पदसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ ८ ॥
लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥९॥
उक्त तीन प्रकारके मनुष्य स्वस्थान व उपपाद पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ९॥
समुग्धादेण केवडिखेत्ते ? ॥१०॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥११॥
उक्त तीन प्रकारके मनुष्य समुद्घातसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १० ॥ उक्त तीन प्रकारके मनुष्य समुद्घातकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ ११ ॥
असंखेज्जेसु वा भाएसु सबलोगे वा ॥ १२ ॥
समुद्घातकी अपेक्षा उक्त तीन प्रकारके मनुष्य लोकके असंख्यात बहुभागोंमें अथवा सर्वलोकमें रहते हैं ॥ १२ ॥
मणुसअपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादण केवडिखेत्ते ? ॥१३॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥ १४ ॥
मनुष्य अपर्याप्त स्वस्थान, समुद्घात और उपपादकी अपेक्षा कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥१३॥ मनुष्य अपर्याप्त उपर्युक्त तीन पदोंकी अपेक्षा लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥१४॥
देवगदीए देवा सत्थाणेण समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? ॥ १५ ॥ लोगस्स असंखेज्जदिभागे ॥१६॥
देवगतिमें देव स्वस्थान, समुद्घात और, उपपादसे कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? ॥ १५ ॥ देव उपर्युक्त पदोंसे लोकके असंख्यातवें भागमें रहते हैं ॥ १६ ॥
भवणवासियप्पहुडि जाव सव्वट्ठसिद्धिविमाणवसियदेवा देवगदिभंगो ॥१७॥ भवनवासियोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक विमानवासी देवोंका क्षेत्र देवगतिके समान है ॥
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