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२, ५, २०] दव्वपमाणाणुगमे गदिमग्गणा
[ ३९५ खेत्तेण सडीए असंखेज्जदिभागो॥ ११ ॥
क्षेत्रकी अपेक्षा द्वितीय पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीके नारकी जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं ॥ ११ ॥
तिस्से सडीए आयामो असंखेज्जाओ जोयणकोडीओ ॥ १२ ॥ जगश्रेणीके असंख्यातवें भाग मात्र उस श्रेणीका आयाम असंख्यात योजनकोटि है ॥१२॥ पढमादियाणं सेडिवग्गमूलाणं संखेज्जाणमण्णोण्णब्भासो ॥ १३ ॥
उपर्युक्त असंख्यात कोटि योजनोंका प्रमाण प्रथमादिक संख्यात जगश्रेणीवर्गमूलोंके परस्पर गुणनफल रूप है ॥ १३ ॥
अभिप्राय यह है कि जगश्रेणीके प्रथम वर्गमूलसे लेकर नीचेके बारह वर्गमूलोंको परस्पर गुणित करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतना द्वितीय पृथिवीके नारकियोंका द्रव्यप्रमाण है । उसके प्रथम वर्गमूलसे लेकर दस वर्गमूलोंको परस्पर गुणित करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतना तृतीय पृथिवीके नारकियोंका द्रव्यप्रमाण है । इसी प्रकार आगेकी पृथिवियोंके नारकियोंका भी द्रव्यप्रमाण जानना चाहिये ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खा दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १४ ॥ तिर्यंचगतिमें तिर्यंच जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १४ ॥ अणंता ॥ १५॥ तिर्यंचगतिमें तिर्यंच जीव द्रव्यप्रमाणसे अनन्त हैं ॥ १५ ॥ अणंताणताहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि ण अवहिरंति कालेण ॥ १६ ॥ वे कालकी अपेक्षा अनन्तानन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे अपहृत नहीं होते हैं । खेत्तेण अणंताणंता लोगा ॥ १७ ॥ उक्त तिर्यंच जीव क्षेत्रकी अपेक्षा अनन्तानन्त लोक प्रमाण हैं ॥ १७ ॥
पंचिंदियतिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खपजत्त-पंचिंदियतिरिक्खजोणिणी-पंचिंदियतिरिक्खअपजत्ता दव्वपमाणेण केवडिया ? ॥ १८ ॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती और पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त जीव द्रव्यप्रमाणसे कितने हैं ? ॥ १८ ॥
असंखेजा ॥ १९ ॥ असंखेजासंखेजाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥ २० ॥
उपर्युक्त चार प्रकारके तिर्यंच द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ १९ ॥ वे कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्साणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ २० ॥
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