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२, ३, ११०]
एगजीवेण अंतराणुगमे संजममग्गणा
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उक्त क्रोधादि चार कषायवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय मात्र होता है ॥९४॥ तथा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ९५ ॥
अकसाई अवगदवेदाण भंगो ॥ ९६ ॥ अकषायी जीवोंका अन्तर अपतगवेदी जीवोंके समान होता है ॥ ९६ ॥ णाणाणुवादेण मदिअण्णाणि-सुदअण्णाणीणमंतरं केवचिरं कालादोहोदि?॥९७॥ ज्ञानमार्गणाके अनुसार मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ।। जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ९८ ॥ उक्कस्सेण बेछावहिसागरोवमाणि देसूणाणि ॥
मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है ॥ ९८ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छ्यासठ (१३२) सागरोपम काल तक होता है ॥ ९९ ॥
विभंगणाणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ।। १०० ॥ विभंगज्ञानियोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १० ॥ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥१०१॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥
विभंगज्ञानियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १०१॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ १०२ ॥
आभिणिवोहिय-सुद-ओहि-मणपज्जवणाणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ?॥
आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १०३ ॥
जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।।१०४॥ उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं ।।१०५।।
आभिनिबोधिक आदि उक्त चार ज्ञानवाले जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ १०४ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण काल तक होता है ।
केवलणाणीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥१०६ ॥ केवलज्ञानियोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १०६ ॥ णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ १०७ ।। केवलज्ञानी जीवोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ १० ॥
संजमाणुवादेण संजद-सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद-परिहारसुद्धिसंजद-संजदासंजदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ १०८ ॥
संयममार्गणाके अनुसार संयत, सामायिक व छेदोपस्थापना शुद्धिसंयत, परिहारविशुद्धिसंयत और संयतासंयत जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ १०८ ॥
जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥१०९।। उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥११॥
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