________________
३८६ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, ३, ८० वेदाणुवादेण इत्थिवेदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ८ ॥ वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ८० ॥ जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥८१॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरिय॥
स्त्रीवेदी जीवोंका जघन्य अन्तर क्षुद्रभवग्रहण काल तक होता है ॥ ८१ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ।। ८२ ॥
पुरिसवेदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ ८३ ।। पुरुषवेदियोंका अन्तर कितने काल होता है ? ।। ८३ ॥ जहण्णेण एगसमओ ॥ ८४ ॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियढें ॥
पुरुषवेदियोंका जघन्य अन्तर एक समय होता है ॥ ८४ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ ८५ ॥
णqसयवेदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ८६ ॥ नपुंसकवेदियोंका अन्तर कितने काल होता है ? ।। ८६ ॥ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ८७ ॥ उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं ।। ८८ ॥
नपुंसकवेदियोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ८७ ॥ तथा उनका उत्कृष्ट अन्तर सागरोपमशतपृथक्त्व मात्र होता है ॥ ८८ ॥
अवगदवेदाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ ८९ ॥ अपगतवेदी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ८९ ॥
उवसमं पड्डुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ।। ९० ॥ उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टू देसूणं ॥ ९१ ॥
उपशमकी अपेक्षा अपगतवेदी जीवोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ९० ।। तथा उन्हींका उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम अर्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण होता है ॥ ९१ ॥
खवगं पडुच्च णत्थि अंतरं, णिरंतरं ।। ९२ ॥ क्षपककी अपेक्षा अपगतवेदी जीवोंका अन्तर नहीं होता है, निरन्तर है ॥ ९२ ॥
कसायाणुवादेण कोधकसाई-माणकसाई-मायकसाई-लोभकमाईणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ।। ९३ ॥
कषायमार्गणाके अनुसार क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ।। ९३ ॥
जहण्णेण एगसमओ ॥ ९४ । उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ९५ ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org' |