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१, ८, १] अप्पाबहुगाणुगमे ओघणिदेसो
[ २२७ अणाहाराणं कम्मइयभंगो ॥ ९२ ।। अनाहारक जीवोंके भावोंकी प्ररूपणा कार्मणकाययोगियोंके समान है ॥ ९२ ॥ णवरि विसेसो, अजोगिकेवलि ति को भावो ? खइओ भावो ॥ ९३ ॥
किन्तु विशेषता यह है कि अनाहारक अयोगिकेवली यह कौन-सा भाव है ? क्षायिक भाव है ॥ ९३ ॥
॥ भावानुगम समाप्त हुआ ॥ ७॥
८. अप्पाबहुगाणुगमो
अप्पाबहुआणुगमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य ॥ १॥ अल्पबहुत्वानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघनिर्देश और आदेशनिर्देश ॥१॥
नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे अल्पबहुत्व चार प्रकारका है। उनमेंसे 'अल्पबहुत्व' शब्द नामअल्पबहुत्व है । यह इससे बहुत है और यह इससे अल्प है, इस प्रकार जो अभेदस्वरूपसे अध्यारोप किया जाता है वह स्थापनाअल्पबहुत्व है।
द्रव्यअल्पबहुत्व आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारका है। जो जीव अल्पबहुत्वविषयक प्राभृतका ज्ञाता होता हुआ भी वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित है उसे आगमद्रव्यअल्पबहुत्व कहते हैं। नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकारका है। जो जीव भविष्यमें अल्पबहुत्वग्राभृतका ज्ञाता होनेवाला है उसे भावी नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व कहते हैं। तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व सचित्त, अचित्त और मिश्रके भेदसे तीन प्रकारका है। उनमें जीवद्रव्यविषयक अल्पबहुत्व सचित्त तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व कहलाता है। शेष द्रव्यों विषयक अल्पबहुत्व अचित्त तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व है। इन दोनोंका अल्पबहुत्व मिश्र तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्व है।
___ आगम और नोआगमके भेदसे भावअल्पबहुत्व दो प्रकारका है। जो अल्पबहुत्वप्राभृतका ज्ञाता है और वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे भी सहित है उसे आगमभावअल्पबहुत्व कहते हैं। ज्ञान, दर्शन, अनुभाग और योगादिकको विषय करनेवाला अल्पबहुत्व नोआगमभावअल्पबहुत्व कहलाता है। इन अल्पबहुत्वभेदोंमेंसे यहां सचित्त नोआगमद्रव्यअल्पबहुत्वका अधिकार है ।
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