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२, २, १०६ ]
एगजीवेण कालागमे जोगमग्गणा
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मनोयोगी हो गया और उस मनोयोगके साथ एक समय मात्र रहकर द्वितीय समय में मरणको प्राप्त होता हुआ फिरसे काययोगी हो गया। इस प्रकारसे मनोयोगका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो जाता है । अथवा, वही काययोगी जीव काययोगकालके समाप्त हो जानेपर मनोयोगी हो गया और - फिर द्वितीय समय में व्याघातको प्राप्त होता हुआ फिरसे काययोगी हो गया । इस तरह दूसरे प्रकारसे भी मनोयोगका जघन्य काल एक समय प्राप्त हो जाता है । इसी प्रकारसे शेष चार मनोयोगों और पांच वचनयोगों के भी जघन्य कालको समझ लेना चाहिये ।
उक्कस्से अंतोमुत्तं ॥ ९८ ॥
जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी अधिक से अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥ कारण यह कि जीव अविवक्षित योगसे विवक्षित योगको प्राप्त होकर उसके साथ अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल ही रह सकता है ।
कायजोगी केवचिरं कालादो होदि ? ।। ९९ ॥
जीव काययोगी कितने काल रहता है ? ॥ ९९ ॥
जहणेण अंतोमुत्तं ॥ १०० ।। उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेजपोग्गलपरियङ्कं ॥ जीव काययोगी कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल रहता है ॥ १०० ॥ अधिक से अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक काययोगी रहता है ॥ १०१ ॥ ओरालियकायजोगी केवचिरं कालादो होदि १ ॥ १०२ ॥
जीव औदारिककाययोगी कितने काल रहता है ॥ १०२ ॥
जहणेण एगसमओ ।। १०३ ।। उक्कस्सेण वावीसं वाससहस्साणि देसूणाणि ॥ जीव औदारिककाययोगी कमसे कम एक समय रहता है ॥ १०३ ॥ अधिक से अधिक वह बाईस हजार वर्षों तक औदारिककाययोगी रहता है ॥ १०४ ॥
ओरालियम सकायजोगी वेडव्वियकायजोगी आहारकायजोगी केवचिरं कालादो होदि १ ॥ १०५ ॥
जीव औदारिकमिश्र काययोगी, वैक्रियिककाययोगी और आहारककाययोगी कितने काल रहता है ? ॥ १०५ ॥
जहणेण एगसमओ ॥ १०६ ॥
जीव औदारिकमिश्रकाययोगी आदि कमसे कम एक समय रहता है ॥ १०६ ॥ ५५ औदारिकमिश्रकाययोगका यह एक समयरूप जघन्य काल दण्डसमुद्घातसे कपाटसमुद्घातको प्राप्त हुए सयोगिकेवली के पाया जाता है, क्योंकि, उस अवस्थामें उनके औदारिकमिश्रकाययोगको छोड़कर अन्य योगकी सम्भावना नहीं है । वैक्रियिककाययोगका वह एक
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