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३७० ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२,२, १०७ समयरूप जघन्य काल उसके पाया जाता है जो कि मनोयोग अथवा वचनयोगसे वैक्रियिककाययोगको प्राप्त होकर द्वितीय समयमें मरणको प्राप्त हो गया है। इसका कारण यह है कि मरनेके प्रथम समयमें कार्मणकाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और वैक्रियिकमिश्रकाययोगको छोड़कर वह वैक्रियिककाययोग नहीं पाया जाता है । आहारककाययोगका वह सूत्रोक्त काल उस प्रमत्तसंयत जीवके पाया जाता है जो मनोयोग अथवा वचनयोगसे आहारक काययोगको प्राप्त होकर द्वितीय समयमें या तो मरणको प्राप्त हो गया है या मूल शरीरमें प्रविष्ट हो गया है, क्योंकि, मरनेके प्रथम समयमें और मूल शरीरमें प्रविष्ट होनेके प्रथम समयमें आहारककाययोग नहीं पाया जाता है।
उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १०७ ॥ अधिकसे अधिक वह अन्तर्मुहूर्त काल तक औदारिकमिश्रकाययोगी आदि रहता है ॥ वेउब्बियमिस्सकायजोगी आहारमिस्सकायजागी केवचिरं कालादो होदि १॥ जीव वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी कितने काल रहता है ? ॥ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १०९ ।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ११० ।।
जीव वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है ॥ १०९ ॥ अधिकसे अधिक वह अन्तर्मुहूर्त काल तक वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी रहता है ॥ ११० ॥
कम्मइयकायजोगी केवचिरं कालादो होदि १ ॥ १११ ॥ जीव कार्मणकाययोगी कितने काल रहता है ? ॥ १११ ॥ जहण्णेण एगसमओ ॥ ११२ ॥ उक्कस्सेण तिण्णिसमया ॥ ११३॥
जीव कार्मणकाययोगी कमसे कम एक समय रहता है ॥ ११२ ॥ अधिकसे अधिक वह तीन समय तक कार्मणकाययोगी रहता है ॥ ११३ ॥
वेदाणुवादेण इत्थिवेदा केवचिरं कालादो होंति ? ॥११४॥ वेदमार्गणाके अनुसार जीव स्त्रीवेदी कितने काल रहते हैं ? ॥ ११४ ॥ जहण्णण एगसमओ ॥ ११५॥ कमसे कम एक समय तक जीव स्त्रीवेदी रहते हैं ॥ ११५ ॥
कोई अपगतवेदी जीव उपशमश्रेणीसे उतरकर स्त्रीवेदी हुआ और द्वितीय समयमें मरकर पुरुषवेदी हो गया इस प्रकार स्त्रीवेदका जघन्य काल एक समय मात्र प्राप्त हो जाता है ।
उकस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं ॥ ११६ ॥ अधिकसे अधिक वे पल्योपमशतपृथक्त्व काल तक स्त्रीवेदी रहते हैं ॥ ११६ ॥ पुरिसवेदा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ११७ ॥
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