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छक्खंडागमे खुदाबंधो
[ २, ३, २४
आणदपाणद-आरणअच्चदकप्पवासिय देवाण मंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥ २४ ॥ आनत-प्राणत और आरण- अच्युत कल्पवासी देवोंका अन्तर कितने काल होता है ? || जहणेण मासपुधत्तं ।। २५ ।। उक्कस्समंतकालमसंखेज्जपोग्गल परियङ्कं ॥ २६ ॥ उक्त देवोंका अन्तर कमसे कम मासपृथक्त्व काल तक होता है || २५ ॥ उनका उक्त अन्तर अधिक से अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ २६ ॥ णवगेवज्जविमाणवासियदेवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ।। २७ ।। नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ २७ ॥
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जहण वासधतं ||२८|| उक्कस्सेण अनंतकालमसंखेज्जपोग्गल परियङ्कं ॥ २९ ॥ नौ ग्रैवेयकविमानवासी देवोंका अन्तर कमसे कम वर्षपृथक्त्व काल तक होता है ॥ २८ ॥ तथा उनका उक्त अन्तर अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ २९ ॥
अणुदिस जाव अवइदविमाणवासिय देवाण मंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ॥३०॥ अनुदिशोंसे लेकर अपराजित पर्यन्त विमानवासी देवोंका अन्तर कितने काल
होता है ? ॥ ३० ॥
जहणेण वासyधत्तं ।। ३१ ।। उक्कस्सेण वे सागरोवमाणि सादिरेयाणि ॥ ३२॥
अनुदिशोंसे लेकर अपराजित विमान पर्यन्त विमानवासी देवोंका अन्तर कमसे कम पृथक्त्व काल तक होता है ॥ ३१ ॥ तथा उनका वह अन्तर अधिकसे अधिक साधिक दो सागरोपम प्रमाण काल तक होता है ॥ ३२ ॥
सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ।। ३३ ।। सर्वार्थसिद्धि-विमानवासी देवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ३३ ॥ णत्थि अंतरं, णिरंतरं ॥ ३४ ॥
सर्वार्थसिद्धि-विमानवासी देवोंका अन्तर नहीं होता, निरन्तर है ॥ ३४ ॥ इंदियाणुवादेण एइंदियाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि १ ।। ३५ ।। इन्द्रियमार्गणा के अनुसार एकेन्द्रिय जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ३५ ॥ जहणेण खुद्दाभवग्गणं ।। ३६ ।।
एकेन्द्रिय जीवोंका अन्तर कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण मात्र काल तक होता है ॥ ३६ ॥ उक्कस्सेण बेसागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिपुधत्तेणन्भहियाणि ॥ ३७ ॥ एकेन्द्रिय जीवोंका अन्तर अधिकसे अधिक पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो हजार सागरोपम प्रमाण काल तक होता है ॥ ३७ ॥
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