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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, ३, ४
एवं सत्तसु पुढवीसु गेरइया ॥ ४ ॥ इस प्रकार सातों पृथिवियोंके नारकी जीवोंका नरकगतिसे अन्तर होता है ॥ ४ ॥ तिरिक्खगदीए तिरिक्खाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥५॥ तिर्यंचगतिमें तिर्यंच जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ॥ ५॥ जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ६॥ तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंका अन्तर कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण मात्र काल तक होता है ॥ ६ ॥
तिर्यंचोंमेंसे मनुष्योंमें उत्पन्न होकर और वहां क्षुद्रभवग्रहण मात्र काल तक रहकर फिरसे तियचोंमें उत्पन्न हुए जीवके उपर्युक्त जघन्य काल पाया जाता है।
उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं ॥७॥ उनका वह अन्तर अधिकसे अधिक सागरोपमशतपृथक्त्व काल तक होता है ॥ ७ ॥
तिर्यंचोंमेंसे निकलकर अन्य तीन गतियोंमें गया हुआ जीव वहां अधिकसे अधिक शतपृथक्त्व सागरोपम काल तक ही रहता है, इससे अधिक नहीं रहता है । ..
पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदियतिरिक्ख-पज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्ख-जोगिणी पंचिंदियतिरिक्ख-अपज्जत्ता मणुसगदीए मणुस्सा मणुसपज्जत्ता मणुसिगी मणुस-अपज्जताणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥८॥
तिर्यंचगतिमें पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त, पंचेन्द्रिय तिथंच योनिमती, पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्त, तथा मनुष्यगतिमें मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और मनुष्य अपर्याप्त जीवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ८ ॥
जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥९॥ उनका अन्तर कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक होता है ॥ ९ ॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ॥ १० ॥
उनका वह अन्तर अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गल परिवर्तन प्रमाण अनन्त काल तक होता है ॥ १० ॥
देवगदीए देवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥११॥ देवगतिमें देवोंका अन्तर कितने काल होता है ? ॥ ११ ॥ जहण्णण अंतोमुहुत्तं ॥ १२ ॥ देवगतिमें देवोंका अन्तर कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक होता है ॥ १२ ॥ उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ॥ १३ ॥
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