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छवखंडागमे खुद्दाबंधो
वणदिकाइया एइंदियाणं भंगो ।। ८५ ।।
वनस्पतिकायिक जीवोंके कालकी प्ररूपणा एकेन्द्रिय जीवोंके समान है ॥ ८५ ॥
गोदजीवा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ८६ ॥
प्राणी निगोद जीव कितने काल रहते हैं ? ॥ ८६ ॥
जहणेण खुद्दाभवग्गहणं ।। ८७ ।। उक्कस्सेण अड्ढाइज्जपोग्गलपरियङ्कं ॥ ८८ ॥ प्राणी जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण काल तक निगोद जीव रहते हैं ॥ ८७ ॥ अधिक से अधिक वे अढ़ाई पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण काल तक निगोद जीव रहते हैं ॥ ८८ ॥
[ २, २, ८५
बादरणिगोदजीवा बादरपुढविकाइयाणं भंगो ।। ८९ ॥
बादर निगोद जीवोंका काल बादर पृथिवीकायिकोंके समान है ॥ ८९ ॥ तसकाइया तसकाइयपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ।। ९० ।। जीव कायिक और त्रसकायिक पर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ ९० ॥ जहणेण खुद्दाभवग्गहणं, अंतोमुहुतं ॥ ९१ ॥
जीव त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जघन्यसे क्रमशः क्षुद्रभवग्रहण और अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥ ९१ ॥
उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि पुव्वकोडिषुधत्तेण भहियाणि वे सागरोवमसहस्साणि ।। ९२ ।
अधिकसे अधिक वे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक दो सागरोपमसहस्र और केवल दो सागरोपमसहस्र काल तक क्रमशः त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त रहते हैं ॥ ९२ ॥ तसकाइयअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ९३ ॥
जीव कायिक अपर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ ९३ ॥
जहणेण खुद्दाभवग्गणं ।। ९४ ।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।। ९५ ।।
जीव कायिक अपर्याप्त कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक रहते हैं ॥ ९४ ॥ अधिकसे अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक त्रसकायिक अपर्याप्त रहते हैं ॥ ९५ ॥
जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी केवचिरं कालादो होंति ? ।। ९६॥ योगमार्गणा के अनुसार जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी कितने काल रहते हैं ? ॥ जहणेण एगसमओ ॥ ९७ ॥
जीव पांच मनोयोगी और पांच वचनयोगी कमसे कम एक समय रहते हैं ॥ ९७ ॥ उदाहरणार्थ कोई एक जीव काययोगी था । वह काययोग कालके समाप्त हो जानेपर
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