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- कालादो होंति ? ॥ ७५ ॥
जीव बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और - बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर कितने काल रहते हैं ! ॥ ७५ ॥
एगजीवेण कालागमे कायमग्गणा
जहण्णेण खुद्दाभवग्गणं ।। ७६ ।। उक्कस्सेण कम्मट्ठी ॥ ७७ ॥
जीव कमसे कम क्षुद्रग्रहण काल तक उपर्युक्त बादर पृथिवीकायादि रहते हैं ॥ ७६ ॥ अधिकसे अधिक वे कर्मस्थिति (७० को. को. सा. ) काल तक बादर पृथिवीकायादि रहते हैं ॥ ७७ ॥ बादरपुढविकाइय- बादरआउकाइय- चादरतेउकाइय चादरवाउकाइय- बादरवणफदिकाइयपत्ते यसरी रपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ७८ ॥
[ ३.६७
जीव बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ ७८ ॥
जहणेण अंतोमुहुत्तं ।। ७९ ।। उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ॥ ८० ॥ जीव कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक बादर पृथिवीकायिक आदि पर्याप्त रहते हैं ॥७९॥ अधिक से अधिक वे संख्यात हजार वर्षों तक बादर पृथिवीकायिकादि पर्याप्त रहते हैं ॥ ८० ॥
जीव उत्कर्ष बादर पृथिवीकायिक पर्याप्तकोंमें बाईस हजार (२२०००) वर्ष, बादर अकायिक पर्याप्तकों में सात हजार ( ७०००) वर्ष, बादर तेजकायिक पर्याप्तकोंमें तीन (३) दिन, बादर वायुकायिक पर्याप्तकोंमें तीन हजार ( ३००० ) वर्ष और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंमें दस हजार (१००००) वर्ष तक रहते हैं; यह इस सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये | बादरपुढवि - बादरआउ-चादर तेउ - बादरवाउ - बादरवणप्फ दिपत्ते यसरीरअपजत्ता केव'चिरं कालादो होंति ? ॥ ८१ ॥
जीव बाद पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजकायिक, बादर वायुकायिक और बाद वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर अपर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ ८१ ॥
जहणेण खुद्दाभवरगहणं ॥। ८२ ।। उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ८३ ॥
जीव कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक बादर पृथिवीकायिक आदि अपर्याप्त रहते हैं ॥८२॥ अधिकसे अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक बादर पृथिवीकायिक आदि अपर्याप्त रहते हैं ॥ ८३ ॥ हुमढविकाइया मुहुमआउकाइया मुहुमतेउकाइया सुहुमवाउकाइया सुहुमफदिकाया सुहुमणिगोदजीवा पज्जत्ता अपज्जत्ता सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्ताणं भंगो ||
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सूक्ष्म पृथिवीकायिक, सूक्ष्म अष्कायिक, सूक्ष्म तेजकायिक, सूक्ष्म वायुकायिक, सूक्ष्म वनस्पतिकायिक और सूक्ष्म निगोद जीत्र तथा इन्हींके पर्याप्त व अपर्याप्त जीवोंके कालकी प्ररूपणा क्रमसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त व सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है ॥ ८४ ॥
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