________________
छवखंडागमे जीवद्वाणं
[ २, २, ६४
जीव द्वीन्द्रिय अपर्याप्त, त्रीन्द्रिय अपर्याप्त व चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥
जहण खुद्दाभवग्गहणं ॥ ६४ ॥
वे कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक द्वीन्द्रियादि अपर्याप्त रहते हैं ॥ ६४ ॥ उक्कस्से अंतोमुहुतं ॥ ६५ ॥
अधिक से अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक द्वीन्द्रियादि अपर्याप्त रहते हैं ।। ६५ ॥ पंचिंदिय-पंचिंदियपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ।। ६६ ।।
जीव पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ ६६ ॥ जहणेण खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं ॥ ६७ ॥
वे कमसे कम क्षुद्रग्रहण काल व अन्तर्मुहूर्त काल तक क्रमसे पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्त रहते हैं ॥ ६७॥
३६६ ]
उक्कस्सेण सागरोवमसहस्साणि पुव्वको डिपुधत्तेण भहियाणि सागरोवमसदपुधत्तं ।। अधिकसे अधिक वे पूर्वकोटिपृथक्त्व से अधिक सागरोपमसहस्र व सागरोपमशतपृथक्त्व क तक क्रमशः पंचेन्द्रिय व पंचेन्द्रिय पर्याप्त रहते हैं ॥ ६८ ॥
पंचिदियअपज्जत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ ६९ ॥
जीव पंचेन्द्रिय अपर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥
जण खुद्दाभवग्गणं ।। ७० ।।
वे कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक पंचेन्द्रिय अपर्याप्त रहते हैं || ७० || उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७१ ॥
अधिकसे अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक पंचेन्द्रिय अपर्याप्त रहते हैं ॥ ७१ ॥ कायावादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया बाउकाइया केवचिरं कालादो होति १ ।। ७२ ।।
कायमार्गणा के अनुसार जीव पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक और वायुकायिक कितने काल रहते हैं ? ॥ ७२ ॥
40
६९ ॥
जहणेण खुद्दाभवग्गणं ।। ७३ ।। उक्कस्से असंखेज्जा लोगा || ७४ ॥
जीव कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण काल तक पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक और वायुकायिक रहते हैं ॥७३॥ तथा अधिक से अधिक वे असंख्यात लोक प्रमाण काल तक पृथिवीकायिक अप्कायिक, तेजकायिक व वायुकायिक रहते हैं ॥ ७४ ॥
बादर पुढवि-बादरआउ-वादरतेउ-चादरवाउ- बादरवणफदिपत्तेयसरीरा
केवचिरं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org