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२, २, १७१]
एगजीवेण कालाणुगमे दंसणमग्गणा
अधिकसे अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयत रहते हैं ॥१५६-१५७॥
जहाक्खाद-विहार-सुद्धिसंजदा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ १५८ ॥ जीव यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत कितने काल रहते हैं ? ॥ १५८ ॥ उवसमं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥ १५९ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥१६॥
उपशमकी अपेक्षा वे कमसे कम एक समय यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत रहते हैं ॥१५९॥ तथा अधिकसे अधिक वे अन्तर्मुहूर्त काल तक यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत रहते हैं ॥ १६०॥
खवगं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १६१ ॥ उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा ॥
क्षपककी अपेक्षा वे कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत रहते हैं ॥१६१॥तथा अधिकसे अधिक वे कुछ कम पूर्वकोटि काल तक यथाख्यात-विहार-शुद्धिसंयत रहते हैं।
असंजदा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ १६३ ॥ जीव असंयत कितने काल रहते हैं ॥ १६३ ॥
अणादिओ अपजवसिदो ॥ १६४ ॥ अणादिओ सपज्जवसिदो ॥ १६५ ॥ सादिओ सपज्जवसिदो ॥ १६६ ॥
__ अभव्य जीव अनादि-अनन्त काल तक असंयत रहते हैं ॥ १६४ ॥ भव्य जीव अनादिसान्त काल असंयत रहते हैं ॥ १६५ ॥ तथा पूर्वमें संयत होकर संयमसे भ्रष्ट हुए भव्य जीव सादि-सान्त काल असंयत रहते हैं ॥ १६६ ॥
जो सो सादिओ सपञ्जवसिदो तस्स इमो णिदेसो- जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥१६७॥ उक्कस्सेण अद्धपोग्गलपरियट्टे देसूर्ण ॥ १६८॥
जो वह सादि-सान्त असंयतकाल है उसका निर्देश इस प्रकार है-कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक जीव असंयत रहते हैं ॥ १६७ ॥ अधिकसे अधिक कुछ कम अर्धपुद्गलपरिवर्तन काल तक जीव असंयत रहते हैं ॥ १६८ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी केवचिरं कालादो होति ॥ १६९ ।। दर्शनमार्गणाके अनुसार जीव चक्षुदर्शनी कितने काल रहते हैं ॥ १६९ ॥ जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १७ ॥ जीव चक्षुदर्शनी कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥ १७० ॥ उक्कस्सेण वे सागरोवमसहस्साणि ॥ १७१ ॥ अधिकसे अधिक वे दो हजार सागरोपम काल तक चक्षुदर्शनी रहते हैं ॥ १७१॥
यह उत्कृष्ट काल चक्षुदर्शनावरणके क्षयोपशमकी अपेक्षा समझना चाहिये। उपयोगकी अपेक्षा उसका काल जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त मात्र है ।
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