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छवखंडागमे खुदाबंधो
अक्खुदंसणी केवचिरं कालादो होंति ? ।। १७२ ।। जीव अचक्षुदर्शनी कितने काल रहते हैं ? ॥ १७२ ॥
अणादिओ अपज्जवसिदो ।। १७३ || अणादिओ सपज्जवसिदो || १७४ ॥ जीव अनादि-अनन्त काल तक अचक्षुदर्शनी रहते हैं १७३ ॥ तथा वे अनादि - सान्त काल भी अचक्षुदर्शनी रहते हैं ॥ १७४ ॥
[ २, २, १७२
कारण इसका यह है कि यदि कोई केवलदर्शनी जीव अचक्षुदर्शनी जीवोंमें आता तो अचक्षुदर्शन के सादिपना बन सकता था, सो यह सर्वथा असम्भव है ।
अधिदंसणी ओधिणाणिभंगो || १७५ || केवल दंसणी केवलणाणिभंगो ॥ १७६ ॥ अवधिदर्शनीकी कालप्ररूपणा अवधिज्ञानीके समान है ॥ १७५ ॥ तथा केवलदर्शनीकी कालप्ररूपणा केवलज्ञानीके समान है ॥ १७६ ॥
लेस्सावादेन किहलेस्सिय-णीललेस्सिय काउलेस्सिया केवचिरं कालादो होंति ? लेश्यामार्गणाके अनुसार जीव कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले कितने का रहते हैं ? || १७७ ॥
जहणेण अंतोमुत्तं ॥ १७८ ॥
जीव कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ? ॥ उक्कस्सेण तेत्तीस - सत्तारस- सत्तसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। १७९ ।। अधिक से अधिक वे साधिक तेत्तीस, सत्तरह और सात सागरोपम काल तक क्रमशः कृष्ण, नील और कापोत लेश्यावाले रहते हैं ॥ १७९ ॥
तेउलेस्सिय-पम्मलेस्सिय सुक्कलेस्सिया केवचिरं कालादो होंति ९ ।। १८० ॥ जीव तेज, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले कितने काल रहते हैं ? ॥ १८० ॥ जहणेण अंतोमुहुत्तं ॥ १८१ ॥
जीव तेज, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥१८१ ॥ उक्कस्सेण वे अट्ठारस-तेत्तीस सागरोवमाणि सादिरेयाणि ।। १८२ ॥
अधिक से अधिक वे साधिक दो, अठारह और तेतीस सागरोपम काल तक क्रमशः तेज, पद्म और शुक्ल लेश्यावाले रहते हैं ॥ १८२ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धिया केवचिरं कालादो होति १ ।। १८३ ।। भव्यमार्गणा के अनुसार जीव भव्यसिद्धिक कितने काल रहते हैं ? ॥ १८३ ॥ अणादिओ सपज्जवसिदो || १८४ ॥ सादिओ सपज्जवसिदो ।। १८५ ।
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