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छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[ २, २, १२७
यह उसका जघन्य काल क्षपकश्रेणीपर चढ़कर और अपगतवेदी होकर सर्वजघन्य कालमें मुक्त हुए जीवके पाया जाता है ।
उक्कस्सेण पुत्रकोडी देणं ॥। १२७ ।।
जीव अपगतवेदी अधिकसे अधिक कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक रहते हैं ॥ १२७ ॥
कोई देव अथवा नारकी क्षायिकसम्यग्दृष्टि पूर्वकोटि प्रमाण आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुआ और आठ वर्ष अनन्तर संयमी हो गया । फिर वह सर्वजघन्य कालसे क्षपकश्रेणीपर चढ़कर अपगतवेदी होता हुआ केवलज्ञानी हुआ और कुछ कम एक पूर्वकोटि काल तक बिहार करके मुक्तिको प्राप्त हो गया । इस प्रकार क्षपककी अपेक्षा अपगतवेदका उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि मात्र पाया जाता है ।
कसायावादे को कसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई केवचिरं कालादो होंति १ ।। १२८ ॥
कषायमार्गणाके अनुसार जीव क्रोधकपायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी कितने काल रहते हैं ? ॥ १२८ ॥
जहण एयसमओ ॥ १२९ ॥
जीव क्रोधकषायी आदि कमसे कम एक समय रहते हैं ॥
१२९ ॥ कोई जीव अविवक्षित कषायसे क्रोधकषायको प्राप्त होकर उसके साथ और फिर द्वितीय समयमें मरणको प्राप्त होता हुआ नरकगतिको छोड़कर अन्य जाकर उत्पन्न हुआ । इस प्रकार से क्रोध कषायका जघन्य काल एक समय मात्र नरकगतिमें उत्पन्न न करानेका कारण यह है कि वहां उत्पन्न हुए जीवोंके उत्पत्तिके प्रथम समयमें. क्रोध कषायका ही उदय देखा जाता है । इसी प्रक्तरसे मान, माया और लोभ कषायोंका भी जघन्य काल एक समय मात्र समझना चाहिये । विशेष इतना है कि मानके जघन्य कालकी विवक्षामें मनुष्यगतिको छोड़कर, मायाकी विवक्षाम तिर्यंचगतिको छोड़कर और लोभकी विवक्षा में देवगतिको छोड़कर अन्य तीन गतियोंमें उत्पन्न कराना चाहिए । कारण इसका यह है कि उन गतियों में उत्पन्न होनेवाले जीवोंके उत्पन्न होने के प्रथम समय में क्रमसे मान, माया और लोभका ही उदय पाया जाता है । जिस प्रकार मरणकी अपेक्षा इनका एक समय मात्र जघन्य काल पाया जाता है उसी प्रकार व्याघातकी अपेक्षासे भी क्रोध कत्रायको छोड़कर अन्य तीन कषायों का वह एक समय मात्र जघन्य काल सम्भव है । व्याघातकी अपेक्षा केवल क्रोध कषायका वह जघन्य काल सम्भव नहीं है, क्योंकि, व्याघात होनेपर उसी क्रोधका ही उदय हुआ करता है ।
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उक्कस्सेण अंतोमुहुतं ॥ १३० ॥
जीव क्रोध कषायी आदि अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥ १३० ॥
एक समय रहा
किसी भी गतिमें
पाया जाता है ।
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