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१, ९-१, ४०] जीवट्ठाण-चूलियाए पयडिसमुक्कित्तणं
[२७३ वज्रनाराचशरीरसंहनन कहलाता है । जिस कर्मके उदयसे नाराच, कीलें और हड्डियोंकी संधियां वज्रमय नहीं होती हैं वह नाराचशरीरसंहनन नामकर्म कहा जाता है । जिस कर्मके उदयसे हड्डियोंकी संधियां नाराचसे अर्धविद्ध होती हैं उसका नाम अर्धनाराचशरीरसंहनन नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे हड्डियां वज्रमय न होकर कीलित मात्र होती हैं वह कीलितशरीरसंहनन नामकर्म कहलाता है । जिस कर्मके उदयसे हड्डियां केवल सिराओं, स्नायुओं और मांससे सम्बद्ध मात्र होती हैं वह असंप्राप्तामृपाटिकाशरीरसंहनन नामकर्म कहा जाता है।
जं तं वण्णणामकम्मं तं पंचविहं- किण्हवण्णणामं णीलवण्णणामं रूहिरवण्णणामं हालिद्दवण्णणामं सुक्किलवण्णणामं चेदि ॥ ३७॥
जो वह वर्ण नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- कृष्णवर्ण नामकर्म, नीलवर्ण नामकर्म, रुधिरवर्ण नामकर्म, हारिद्रवर्ण नामकर्म और शुक्लवर्ण नामकर्म ॥ ३७॥
जिस कर्मके उदयसे शरीर सम्बन्धी पुद्गलोंका वर्ण कृष्ण हुआ करता है वह कृष्णवर्ण नामकर्म कहलाता है । इसी प्रकार शेष वर्ण नामकोका भी अर्थ जान लेना चाहिये ।
जं तं गंधणामकम्मं तं दुविहं- सुरहिगंधं दुरहिगंधं चेव ॥ ३८ ॥ जो वह गन्ध नामकर्म है वह दो प्रकारका है- सुरभिगन्ध और दुरभिगन्ध ॥ ३८॥
जिस कर्मके उदयसे शरीर सम्बन्धी पुद्गल सुगन्धित होते हैं वह सुरभिगन्ध नामकर्म है । जिस कर्मके उदयसे शरीर सम्बन्धी पुद्गल दुर्गन्धित होते हैं वह दुरभिगन्ध नामकर्म है ।
__जं तं रसणामकम्मं तं पंचविहं- तित्तणामं कडुवणामं कसायणामं अंबणामं महुरणामं चेदि ॥ ३९॥
___ जो वह रस नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- तिक्त नामकर्म, कटुक नामकर्म, कषाय नामकर्म, आम्ल नामकर्म और मधुर नामकर्म ॥ ३९ ॥
__ जिस कर्मके उदयसे शरीर सम्बन्धी पुद्गल तिक्त रससे परिणत होते हैं वह तिक्त नामकर्म है। इसी प्रकार शेष चार रस नामकर्मीका अर्थ भी जानना चाहिए ।
___ जंतं पासणामकम्मं तं अट्ठविहं- कक्खडणामं मउवणामं गुरुअणामं लहुवणामं णिद्धणामं लुक्खणामं सीदणामं उसुणणामं चेदि ॥४०॥
जो वह स्पर्श नामकर्म है वह आठ प्रकारका है- कर्कश नामकर्म, मृदु नामकर्म, गुरुक नामकर्म, लघुक नामकर्म, स्निग्ध नामकर्म, रूक्ष नामकर्म, शीत नामकर्म और उष्ण नामकर्म ॥४०॥
जिस कर्मके उदयसे शरीर सम्बन्धी पुद्गलोंमें कठोरता होती है वह कर्कश नामकर्म कहलाता है । इसी प्रकार शेष सात स्पर्श नामकर्मोका भी अर्थ जानना चाहिए।
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