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२, १, ४५]
सामित्ताणुगमे णाणमग्गणा जीव चारित्रमोहनीयके अन्तर्गत नोकषायके भेदभूत स्त्रीवेदके उदयसे स्त्रीवेदी, पुरुषवेदके उदयसे पुरुषवेदी और नपुंसकवेदके उदयसे नपुंसकवेदी होता है; यह सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये।
अवगदवेदो णाम कधं भवदि ? ॥ ३८॥ उवसमियाए खड्याए लद्धीए ॥३९॥ ___ जीव अपगतवेदी कैसे होता है ? ॥ ३८ ॥ औपशमिक व क्षायिक लब्धिसे जीव अपगतवेदी होता है ॥ ३९ ॥
विवक्षित वेदके उदयके साथ उपशमश्रेणिपर आरूढ हुए जीवके मोहनीयका अन्तरकरण करनेके पश्चात् यथायोग्य स्थानमें जो उदयादि अवस्थासे रहित विविक्षत वेदके पुद्गलस्कन्धका सद्भाव रहता है उसका नाम उपशम है। उसकी लब्धि (प्राप्ति ) से जीवकी अपगतवेद अवस्था होती है। इसी प्रकार विवक्षित वेदके उदयके साथ क्षपकश्रेणिपर आरूढ हुए जीवके मोहनीयका अन्तर करके यथायोग्य स्थानमें उस विवक्षित वेदके पुद्गलस्कन्धोंका स्थिति और अनुभागके साथ जीवप्रदेशोंसे सर्वथा पृथक् हो जानेका नाम क्षय है। इससे उत्पन्न आत्मपरिणामकी प्राप्तिसे जीवकी अपगतवेद अवस्था होती है।
कसायाणुवादेण कोधकसाई माणकसाई मायकसाई लोभकसाई णाम कधं भवदि ? ॥ ४० ॥ चरित्तमोहणीयस्स कम्मस्स उदएण ॥ ४१ ॥
कषायमार्गणाके अनुसार जीव क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी और लोभकषायी कैसे होता है ? ॥ ४० ॥ चारित्रमोहनीय कर्मके उदयसे जीव क्रोधकषायी आदि होता है ॥४१॥
अभिप्राय यह है कि जीव क्रोधकषायके उदयसे क्रोधकषायी, मानकषायके उदयसे मानकषायी, मायाकषायके उदयसे मायाकषायी और लोभकषायके उदयसे लोभकषायी होता है ।
अकसाई णाम कधं भवदि १ ॥ ४२ ॥ उपसमियाए खइयाए लद्धीए ॥४३॥
जीव अकषायी कैसे होता है ? ॥ ४२ ॥ औपशमिक व क्षायिक लब्धिसे जीव अकषायी होता है ॥ ४३ ॥
णाणाणुवादेण मदिअण्णाणी सुदअण्णाणी विभंगणाणी आभिणिबोहियणाणी सुदणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी णाम कधं भवदि १ ॥४४॥
ज्ञानमार्गणाके अनुसार जीव मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, विभंगज्ञानी, आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी और मनःपर्ययज्ञानी किस प्रकार होता है ? ।। ४४ ॥
खओवसमियाए लद्धीए ।। ४५॥ क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव मत्यज्ञानी आदि होता है ॥ ४५ ॥
अपने अपने आवरणों ( मतिज्ञानावरणादि ) के देशघाति स्पर्धकोंके उदयसे क्षायोपशमिक लब्धि होती है और उससे जीव मत्यज्ञानी आदि होता है, ऐसा अभिप्राय ग्रहण करना चाहिए।
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