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३६२] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, २, २० जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणमंतोमुहुत्तं ॥२०॥
जीव मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनी कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण मात्र और अन्तर्मुहूर्त काल तक रहते हैं ॥२०॥
सामान्य मनुष्योंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है, क्योंकि, उनमें मनुष्य अपर्याप्तकोंकी भी सम्भावना है। किन्तु मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंका वह जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त मात्र है, क्योंकि, उनकी इससे हीन आयु नहीं पायी जाती ।
उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि पुच्चकोडिपुधत्तेणभहियाणि ॥ २१ ॥
जीव मनुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनी अधिकसे अधिक पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम काल तक रहते हैं ॥ २१॥
पूर्वकोटिपृथक्त्वसे यहां क्रमसे सैंतालीस (४७), तेईस (२३) और सात (७) पूर्वकोटियोंको ग्रहण करना चाहिये ।
मणुस्सअपजत्ता केवचिरं कालादो होंति ? ॥ २२ ॥ जीव मनुष्य अपर्याप्त कितने काल रहते हैं ? ॥ २२ ॥ जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥२३॥ जीब मनुष्य लब्ध्यपर्याप्त कमसे कम क्षुद्रभवग्रहण मात्र काल रहते हैं ॥ २३ ॥ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ २४ ॥ वे मनुष्य अपर्याप्त अधिकसे अधिक अन्तर्मुहूर्त काल रहते हैं ॥ २४ ॥ देवगदीए देवा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ २५ ॥ देवगतिमें जीव देव कितने काल रहते हैं ॥ २५ ॥ जहण्णेण दसवाससहस्साणि ॥ २६ ॥ देवगतिमें जीव देव कमसे कम दस हजार वर्ष रहते हैं ॥ २६ ॥ उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि ॥ २७ ॥ देवगतिमें जीव देव अधिकसे अधिक तेतीस सागरोपम काल तक रहते हैं ॥ २७ ॥ भवणवासिय-चाणवेंतर-जोदिसियदेवा केवचिरं कालादो होंति ? ॥ २८ ॥ जीव भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देव कितने काल रहते हैं ? ॥ २८ ॥ जहण्णेण दसवाससहस्साणि दसवाससहस्साणि पलिदोवमस्स अट्ठमभागो ॥२९॥
जीव भवनवासी, वानव्यन्तर व ज्योतिषी देव कमसे कम क्रमशः दस हजार वर्ष, दस हजार वर्ष और पल्योपमके अष्टम भाग तक रहते हैं ॥ २९ ॥
उक्कस्सेण सागरोवमं सादिरेयं, पलिदोवमं सादिरेयं, पलिदोवमं सादिरेयं ॥३०॥
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