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२, १, २३ ] सामित्ताणुगमे कायमग्गणा
[३५३ क्षायिक लब्धिसे जीव सिद्ध होता है ॥ १३ ॥
इंदियाणुवादेण एइंदिओ बीइंदिओ तीइंदिओ चरिंदिओ पंचिंदिओ णाम कधं भवदि ? ॥ १४ ॥
इन्द्रियमार्गणाके अनुसार जीव एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय कैसे होता है ? ॥ १४ ॥
खओवसमियाए लद्धीए ॥ १५ ॥ क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव एकेन्द्रियादि होता है ॥ १५॥
स्पर्शन-इन्द्रियावरण सम्बन्धी सर्वघाति स्पर्धकोंके सदवस्थारूप उपशम, उसीके देशघाति स्पर्धकोंके उदय और शेष चार इन्द्रियावरण सम्बन्धी देशघाति स्पर्धकोंके उदयक्षय, उन्हींके सदवस्थारूप उपशम तथा उनके ही सर्वघाति स्पर्धकोंके उदयसे चूंकि जीवकी एकेन्द्रियरूप अवस्था होती है; अतएव वह क्षयोपशम लब्धिसे होती है, ऐसा सूत्रमें कहा गया है। इसी प्रकार शेष द्वीन्द्रिय आदि अवस्थाओंके सम्बन्धमें भी जानना चाहिए ।
अणि दिओ णाम कधं भवदि ? ॥ १६ ॥ जीव अनिन्द्रिय अर्थात् इन्द्रिय (भावेन्द्रिय ) रहित अवस्थावाला कैसे होता है ? ॥१६॥ खइयाए लद्धीए ॥ १७ ॥ क्षायिक लब्धिसे जीव अनिन्द्रिय होता है ॥ १७ ॥
समूल कर्मके नष्ट हो जानेपर जो आत्मपरिणाम उत्पन्न होता है उसे क्षय तथा उसकी प्राप्तिको क्षायिक लब्धि कहा जाता है। इस क्षायिक लब्धिसे जीव अनिन्द्रिय होता है, ऐसा सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिए।
कायाणुवादेण पुढविकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ १८॥ पुढविकाइयणामाए उदएण ॥ १९॥
कायमार्गणाके अनुसार जीव पृथिवीकायिक कैसे होता है ? ॥ १८॥ पृथिवीकायिक नामकर्मके उदयसे जीव पृथिवीकायिक होता है ॥ १९ ॥
आउकाइओ णाम कधं भवदि १ ॥२०॥ आउकाइयणामाए उदएण ॥२१॥
जीव अप्कायिक कैसे होता है ? ॥ २०॥ अप्कायिक नामकर्मके उदयसे जीव अप्कायिक होता है ॥ २१ ॥
तेउकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ २२ ॥ तेउकाइयणामाए उदएण ॥ २३ ॥
जीव अग्निकायिक कैसे होता है ? ॥ २२ ॥ अग्निकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव अग्निकायिक होता है ॥ २३ ॥
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