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३५४ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२,१,२४ वाउकाइओ णाम कधं भवदि १ ॥२४॥ वाउकाइयणामाए उदएण ॥२५॥
जीव वायुकायिक कैसे होता है ? ॥ २४ ॥ वायुकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव वायुकायिक होता है ॥२५॥
वणप्फइकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥२६॥ वणफइकाइयणामाए उदएण ॥२७॥
जीव वनस्पतिकायिक कैसे होता है ? ॥ २६॥ वनस्पतिकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव वनस्पतिकायिक होता है ॥ २७ ॥
तसकाइओ णाम कधं भवदि १ ॥ २८॥ तसकाइयणामाए उदएण ॥ २९ ॥
जीव त्रसकायिक कैसे होता है ? ॥ २८॥ त्रसकायिक नामप्रकृतिके उदयसे जीव त्रसकायिक होता है ॥ २९ ॥
अकाइओ णाम कधं भवदि ? ॥ ३० ॥ खइयाए लद्धीए ॥३१॥ जीव अकायिक कैसे होता है ? ॥३०॥ क्षायिक लब्धिसे जीव अकायिक होता है ॥३१॥ जोगाणुवादेण मणजोगी वचजोगी कायजोगी णाम कधं भवदि ? ॥३२॥ योगमार्गणाके अनुसार जीव मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी कैसे होता है ? ॥३२॥ खओवसमियाए लद्धीए ॥ ३३ ॥ क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी होता है ? ॥३३॥
जीवप्रदेशोंके संकोच-विस्ताररूप परिस्पन्दको योग कहते हैं। वह योग तीन प्रकारका हैमनोयोग, वचनयोग और काययोग । मनोवर्गणासे उत्पन्न हुए द्रव्यमनके अवलम्बनसे जो जीवप्रदेशोंका संकोच-विस्तार होता है वह मनोयोग है। भाषावर्गणा सम्बन्धी पुद्गलस्कन्धोंके अवलम्बनसे जो जीवप्रदेशोंका संकोच-विस्तार होता है वह वचनयोग है । तैजसशरीरके विना शेष औदारिक आदि चार शरीरोंके अवलम्बनसे जो जीवप्रदेशोंका संकोच-विस्तार होता है वह काययोग है। जीव क्षयोपशमलब्धिके द्वारा यथासम्भव इन तीन योगोंसे युक्त होता है । ये तीनों योग चूंकि वीर्यान्तराय और यथासम्भव नोइन्द्रियावरणादिके क्षयोपशमसे होते हैं, अत एव उन्हें क्षायोपशमिक लब्धिसे उत्पन्न कहा गया है।
अजोगी णामं कधं भवदि १ ॥३४॥ खइयाए लद्धीए ॥३५॥ जीव अयोगी कैसे होता है ? ॥ ३४ ॥ क्षायिक लब्धिसे जीव अयोगी होता है ॥ ३५॥ वेदाणुवादेण इस्थिवेदो पुरिसवेदो णqसयवेदो णाम कधं भवदि ? ॥ ३६ ॥ वेदमार्गणाके अनुसार जीव स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी कैसे होता है ? ॥३६॥ चरित्तमोहणीयस्स कम्मस्स उदएण इत्थि-पुरिस-णqसयवेदा ॥ ३७॥ चारित्रमोहनीय कमके उदयसे जीव स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी और नपुंसकवेदी होता है ॥३७॥
कहा गया है।
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