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सामित्ताणुगमे भवियमग्गणा
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क्षायिक लब्धिसे उत्पन्न होनेवाला कहा गया है। यथाख्यातविहार-शुद्धिसंयम चूंकि उपशान्तकषाय नामक ग्यारहवें गुणस्थानमें औपशमिक लब्धिसे तथा आगे क्षीणकषाय आदि गुणस्थानोंमें क्षायिक लब्धिसे होता है, अत एव उसे भी औपशमिक और क्षायिक लब्धिसे उत्पन्न होनेवाला निर्दिष्ट किया गया है। • असंजदो णाम कधं भवदि ? ॥५४॥ संजमघादीणं कम्माणमुदएण ॥ ५५ ॥
जीव असंयत कैसे होता है ? ॥ ५४ ॥ संयमका घात करनेवाले कर्मोंके उदयसे जीव असंयत होता है ॥ ५५ ॥
दंसणाणुवादेण चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी ओहिदंसणी णाम कधं भवदि १॥ दर्शनमार्गणाके अनुसार जीव चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी कैसे होता है ?॥ खओवसमियाए लद्धीए ॥ ५७॥ क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव चक्षुदर्शनी, अचक्षुदर्शनी और अवधिदर्शनी होता है ॥५७॥ केवलदसणी णाम कधं भवदि १ ॥५८ ।। खइयाए लद्धीए ॥ ५९॥ जीव केवलदर्शनी कैसे होता है ? ॥ ५८ ॥ क्षायिक लब्धिसे जीव केवलदर्शनी होता
लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिओ णीललेस्सिओ काउलेस्सिओ तेउलेस्सिओ पम्मलेस्सिओ सुक्कलेस्सिओ णाम कधं भवदि ? ॥ ६० ।। ओदइएण भावेण ॥ ६१॥
लेश्यामार्गणाके अनुसार जीव कृष्णलेश्या, नीललेश्या, कापोतलेश्या, तेजोलेश्या, पद्मलेश्या और शुक्ललेश्यावाला कैसे होता है ? ॥ ६० ॥ औदयिक भावसे जीव कृष्ण आदि उपर्युक्त लेश्याओंवाला होता है ॥ ६१ ॥
कषायोंके मन्दतमादि छह प्रकारके अनुभागस्पर्धकोंमेंसे चूंकि मन्दतम अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे शुक्ललेश्या, उनके मन्दतर अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे पद्मलेश्या, मन्द अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे तेजोलेश्या, तीत्र अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे कापोतलेश्या, तीव्रतर अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे नीललेश्या और तीव्रतम अनुभागस्पर्धकोंके उदयसे कृष्णलेश्या होती है; इसीलिये सूत्रमें उनको उदयजनित कहा गया है।
अलेस्सिओ णाम कधं भवदि ? ॥६२॥ खइयाए लद्धीए ॥ ६३॥
जीव अलेश्यिक (लेश्यारहित) कैसे होता है ? ॥६२॥ क्षायिक लब्धिसे जीव अलेश्यिक होता है ॥ ६३ ॥
भवियाणुवादेण भवसिद्धिओ अभवसिद्धिओ णाम कधं भवदि १ ॥ ६४॥ भव्यमार्गणाके अनुसार जीव भव्यसिद्धिक व अभव्यसिद्धिक कैसे होता है ? ॥ ६४ ॥
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