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३५८ ] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १,६५ पारिणामिएण भावेण ॥ ६५ ॥ परिणामिक भावसे जीव भव्यसिद्धिक व अभव्यसिद्धिक होता है ॥ ६५॥ णेव भवसिद्धिओ णेव अभवसिद्धिओ णाम कधं भवदि १ ॥ ६६ ॥ जीव न भव्यसिद्धिक न अभव्यसिद्धिक कैसे होता है ? ॥ ६६ । खझ्याए लद्धीए ॥ ६७ ॥ क्षायिक लब्धिसे जीव न भव्यसिद्धिक न अभव्यसिद्धिक होता है ॥ ६७ ॥ सम्मत्ताणुवादेण सम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ६८॥ सम्यक्त्वमार्गणाके अनुसार जीव सम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥ ६८ ॥ उपसमियाए खड्याए खओवसमियाए लद्धीए ॥ ६९॥ जीव सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धिसे होता है ॥ ६९ ॥
चूंकि दर्शनमोहनीयके उपशमसे औपशमिक सम्यक्त्व, उसके क्षयसे क्षायिक सम्यक्त्व और उसीके क्षयोपशमसे क्षायोपशमिक सम्यक्त्व उत्पन्न होता है; अत एव यहां यह निर्दिष्ट किया गया है कि जीव सम्यग्दृष्टि औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धिसे होता है।
खइयसम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७० ॥ खइयाए लद्धीए ॥ ७१ ॥
जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥७०॥ जीव क्षायिकसम्यग्दृष्टि क्षायिक लब्धिसे होता है ॥ ७१ ॥
वेदगसम्मादिट्ठी णाम कधं भवदि?॥ ७२ ॥ खओवसमियाए लद्धीए ॥७३॥
जीव वेदकसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥७२॥ जीव वेदकसम्यग्दृष्टि क्षायोपशमिक लब्धिसे होता है ॥ ७३ ॥
उसमसम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७४ ॥ उवसमियाए लद्धीए ॥ ७५ ॥
जीव उपशमसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥ ७४ ॥ जीव उपशमसम्यग्दृष्टि औपशमिक लब्धिसे होता है । ७५॥
सासणसम्माइट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ७६ ॥ पारिणामिएण भावेण ॥ ७७॥
जीव सासादनसम्यग्दृष्टि कैसे होता है ? ॥ ७६ ॥ जीव सासादनसम्यग्दृष्टि पारिणामिक भावसे होता है ॥ ७७ ॥
सम्मामिच्छादिट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥७८॥ खओवसमियाए लद्धीए ॥७९॥
जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि कैसे होता है ? ॥ ७८ ॥ जीव सम्यग्मिथ्यादृष्टि क्षायोपशमिक लब्धिसे होता है ॥ ७९ ॥
मिच्छादिट्ठी णाम कधं भवदि ? ॥ ८० ॥ मिच्छत्तकम्मस्स उदएण ॥ ८१ ॥
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