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३५६] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, ४६ केवलणाणी णाम कधं भवदि ? ॥ ४६॥ खइयाए लद्धीए ॥४७॥ जीव केवलज्ञानी कैसा होता है ? ॥४६॥ क्षायिक लब्धिसे जीव केवलज्ञानी होता है। संजमाणुवादेण संजदो सामाइयच्छेदोवट्ठावण-सुद्धिसंजदो णाम कधं भवदि ॥
_संयममार्गणाके अनुसार जीव संयत तथा सामायिक छेदोपस्थापना-शुद्धिसंयत कैसे होता है ? ॥ ४८ ॥
उवसमियाए खइयाए खओवसमियाए लद्धीए ॥ ४९ ॥
औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव संयत और सामायिक एवं छेदोपस्थापना शुद्धिसंयत होता है ॥ ४९ ॥
___ चूंकि चारित्रमोहनीयके सर्वोपशमसे उपशान्तकषाय गुणस्थानमें तथा उसीके सर्वथा क्षयसे क्षीणकषायादि गुणस्थानोंमें संयतभाव पाया जाता है, अत एव यहां संयतभावकी उत्पत्ति औपशमिक और क्षायिक लब्धिसे निर्दिष्ट की गई है। इसके अतिरिक्त चार संज्वलन और नौ नोकषायोंके देशघाती स्पर्धकोंके उदयसे भी उक्त संयतभावकी उत्पत्ति देखे जानेसे उसे क्षायोपशमिक लब्धिसे उत्पन्न होनेवाला कहा गया है। सर्वघाति स्पर्धक अनन्तगुणित हीन होकर देशघाति खरूपसे परिणत होते हुए जो उदयमें आते हैं उसमें उनकी अनन्तगुणित हीनताका नाम क्षय तथा उनके देशघाति स्वरूपसे अवस्थित रहनेका नाम उपशम है । इस क्षय और उपशमके साथ उनके उदित रहने रूप अवस्थाका यहां क्षयोपशमखरूपसे ग्रहण करना चाहिये । इस क्षयोपशमकी लब्धिसे संयतभावके साथ सामायिकसंयतभाव तथा छेदोपस्थापनासंयतभाव भी उत्पन्न होता है, अत एव उनकी उत्पत्ति क्षायोपशमिक लब्धिसे भी सूत्रमें निर्दिष्ट की गई है; ऐसा सूत्रका अभिप्राय समझना चाहिये
परिहारशुद्धिसंजदो संजदासंजदो णाम कधं भवदि ? ॥५०॥ खओवसमियाए लद्धीए ॥ ५१ ॥
जीव परिहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत कैसे होता है ? ॥५०॥ क्षायोपशमिक लब्धिसे जीव परिहारशुद्धिसंयत और संयतासंयत होता है ॥ ५१ ॥
सुहुमसांपराइय-सुद्धिसंजदो जहाक्खाद-विहार-सुद्धिसंजदो णाम कधं भवदि ॥ जीव सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयत और यथाख्यात-विहारशुद्धिसंयत कैसे होता है ? ॥५२॥ उवसमियाए खइयाए लद्धीए ॥ ५३॥
औपशमिक और क्षायिक लब्धिसे जीव सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयत और यथाख्यातविहारशुद्धिसंयत होता है ॥ ५३ ॥
चूंकि उपशामक और क्षपक दोनों ही प्रकारके सूक्ष्मसाम्परायिक गुणस्थानमें सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयम पाया जाता है, इसलिये सूक्ष्मसाम्परायिक-शुद्धिसंयमको औपशमिक और
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