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२, १,२]
सामित्ताणुगमे अणियोगद्दारणामणिदेसो
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संज्ञीमार्गणाके अनुसार संज्ञी बन्धक हैं और असंज्ञी भी बन्धक हैं ॥ ३८ ॥ णेव सण्णी णेव असण्णी बंधा वि अत्थि अबंधा वि अत्थि ॥ ३९ ॥
जो न संज्ञी हैं और न असंज्ञी हैं ऐसे केवलज्ञानी जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ॥ ३९ ॥
अभिप्राय यह है कि संज्ञित्व और असंज्ञित्व इन दोनों ही अवस्थाओंसे रहित हुए •सयोगिकेवली तो बन्धक हैं और अयोगिकेवली अबन्धक हैं।
सिद्धा अबंधा ॥४०॥ सिद्ध जीव अबन्धक हैं ॥ ४०॥ आहाराणुवादेण आहारा बंधा ॥ ४१ ॥ आहारमार्गणाके अनुसार आहारक जीव बन्धक हैं ॥ ४१ ॥ अणाहारा बंधा वि अस्थि अबंधा वि अत्थि ॥ ४२ ॥ अनाहारक जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ॥ ४२ ॥ सिद्धा अबंधा ॥४३॥ सिद्ध अबन्धक हैं ॥ ४३ ॥
॥ बन्धक सत्प्ररूपणा समाप्त हुई ॥
१. एगजीवेण सामित्तं एदेसि बंधयाणं परूवणदाए तत्थ इमाणि एक्कारस अणियोगद्दाराणि •णादव्वाणि भवंति ॥१॥
इन बन्धकोंकी प्ररूपणामें प्रयोजनभूत होनेसे ये ग्यारह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं ॥१॥ उन ग्यारह अनुयोगद्वारोंके नामनिर्देशके लिए उत्तरसूत्र कहते हैं
एगजीवेण सामित्तं एगजीवेण कालो एगजीवेण अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ • दबपरूवणाणुगमो खेत्ताणुगमो फोसणाणुगमो णाणाजीवेहि कालो णाणाजीवेहि अंतर भागाभागाणुगमो अप्पाबहुगाणुगमो चेदि ॥२॥
एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल, एक जीवकी अपेक्षा अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, द्रव्यप्ररूपणानुगम, क्षेत्रानुगम, स्पर्शनानुगम, नाना जीवोंकी
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