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जीवट्ठाण-चूलियाए पयडिसमुक्त्तिणं
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. जिस कर्मके उदयसे आहारवर्गणाके पुद्गलस्कन्ध जीवसे अवगाहित प्रदेशमें स्थित होकर रस, रुधिर, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा और शुक्रस्वभाववाले औदारिकशरीरके स्वरूपसे परिणत होते हैं उसे औदारिकशरीर नामकर्म कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे आहारवर्गणाके स्कन्ध अणिमामहिमा आदि गुणोंसे संयुक्त वैक्रियिकशरीरके स्वरूपसे परिणत होते हैं उसे वैक्रियिकशरीर नामकर्म कहते हैं । जिस कर्मके उदयसे आहारवर्गणाके स्कन्ध आहारकशरीरके रूपसे परिणत होते हैं उस कर्मका नाम आहारकशरीर नामकर्म है। जिस कर्मके उदयसे तैजसवर्गणाके स्कन्ध निःसरण और अनिःसरणरूप प्रशस्त अथवा अप्रशस्त तैजसशरीरके स्वरूपसे परिणत होते हैं वह तैजस नामकर्म कहलाता है। जिस कर्मका उदय सभी कोका आश्रयभूत होता है उसे कार्मणशरीर नामकर्म कहा जाता है।
जं तं सरीरबंधणणामकम्मं तं पंचविहं- ओरालियसरीरबंधणणामं वेउव्वियसरीरबंधणणामं आहारसरीरबंधणणामं तेयासरीरबंधणणामं कम्मइयसरीरबंधणणामं चेदि ॥३२॥
__ जो वह शरीरबन्धन नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- औदारिकशरीरबन्धन नामकर्म, चौक्रियिकशरीरबन्धन नामकर्म, आहारकशरीरबन्धन नामकर्म, तैजसशरीरबन्धन नामकर्म और कार्मणशरीरबन्धन नामकर्म ॥ ३२ ॥
___जिस कर्मके उदयसे औदारिकशरीरके परमाणु परस्पर बन्धको प्राप्त होते हैं उसे औदारिकशरीरबन्धन नामकर्म कहते हैं । इसी प्रकार शेष शरीरबन्धन नामकौका भी अर्थ जानना चाहिये।
जं तं सरीरसंघादणामकम्मं तं पंचविहं-ओरालियसरीरसंघादणामं वेउब्बियसरीरसंघादणामं आहारसरीरसंघादणामं तेयासरीरसंघादणामं कम्मइयसरीरसंघादणामं चेदि ॥३३॥
जो वह शरीरसंघात नामकर्म है वह पांच प्रकारका है- औदारिकशरीरसंघात नामकर्म, वैक्रियिकशरीरसंघात नामकर्म, आहारकशरीरसंघात नामकर्म, तैजसशरीरसंघात नामकर्म और कार्मणशरीरसंघात नामकर्म ॥ ३३ ॥
जिस कर्मके उदयसे शरीररूपसे परिणत औदारिकशरीरके स्कन्ध छिद्ररहित होकर एकताको प्राप्त होते हैं उसे औदारिकशरीरसंघात नामकर्म कहा जाता है। इसी प्रकार शेष चार शरीरसंघात नामकर्मोका भी अभिप्राय समझ लेना चाहिये ।
जं तं सरीरसंठागणामकम्मं तं छविहं- समचउरससरीरसंठाणणामं णग्गोहपरिमंडलसरीरसंठाणणामं सादियसरीरसंठाणणामं खुज्जसरीरसंठाणणामं वामणसरीरसंठाणणामं हुडसरीरसंठाणणामं चेदि ॥ ३४ ॥
जो वह शरीरसंस्थान नामकर्म है वह छह प्रकारका है- समचतुरस्रशरीरसंस्थान नामकर्म
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