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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-९, २३३
मणुसे उवण्णलया मणुसा केई दस उप्पारंति- केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केई मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केई केवलणाणमुप्पाएंति, केई सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केई सम्मत्तमुप्पाएंति, केई संजमा - संजममुपाएंति, केई संजममुप्पाएंति | णो बलदेवत्तं उत्पाति, णो वासुदेव त्तमुप्पा एंति, णो चक्कवट्टित्तमुपाति, णो तित्थयरत्तमुप्पाएंति के मंतयडा होदूण सिज्यंति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमतं परिविजाणंति ।। २३३ ॥
३४२ ]
उक्त भवनवासी आदि देव - देवियां मनुष्योंमें उत्पन्न होकर मनुष्य पर्याय के साथ कितने ही दसको उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मन:पर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं । किन्तु वे न बलदेवको उत्पन्न करते हैं, न वासुदेवको उत्पन्न करते हैं, न चक्रवर्तित्वको उत्पन्न करते हैं, और न तीर्थंकरत्वको उत्पन्न करते हैं । कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं, और सर्व दुःखों के अन्तको प्राप्त होते हैं ॥ २३३ ॥
सोहम्मीसाण जाव सदर - सहस्सारकप्पवासियदेवा जधा देवगदिभंगो ॥ २३४ ॥ सौधर्म - ऐशानसे लेकर शतार -सहस्रार कल्प तकके देवोंकी आगति सामान्य देवगति के समान है || २३४॥
आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गढ़ीओ आगच्छंति ? ।। २३५ || एक्कं हि चैव मणुसगदिमागच्छंति || २३६ ॥
आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवों तक देव पर्यायसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३५ ॥ उपर्युक्त आनतादि नौ ग्रैवेयक तकके विमानवासी देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३६ ॥
मणुसे उबवण्णलया मणुस्सा केई सव्वे उप्पाएंति || २३७ ||
आनतादि नौ ग्रैवेयक तकके उपर्युक्त विमानवासी देव देव पर्यायसे च्युत होकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए मनुष्य पर्यायके साथ कोई सत्र ही गुणोंको उत्पन्न करते हैं ॥ २३७॥
अणुदिस जाव अवराइद विमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति ? ॥ २३८ || एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति || २३९ ॥
अनुदिशोंसे लेकर अपराजित विमानवासी देवों तक देव पर्यायसे च्युतं होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३८ ॥ उपर्युक्त विमानवासी देव वहांसे च्युत होकर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३९ ॥
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