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३४०] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-९, २२० णाणमुप्पाएंति, केइं सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केइं सम्मत्तमुप्पाएंति, केई संजमासंजममुप्पाएंति, केई संजममुप्पाएंति । णो बलदेवत्तं णो वासुदेवत्तमुप्पाएंति, णो चक्कवट्टित्तमुप्पाएंति । केई तित्थयरत्तमुप्पाएंति । केइमंतयडा होदूण सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिणिव्वाणयंति, सव्वदुक्खाणमंतं परिविजाणंति ॥ २२० ।।।
ऊपरकी तीन पृथिवियोंसे निकलकर मनुष्योंमें उत्पन्न हुए कोई मनुष्य ग्यारहको उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको, कोई अवविज्ञानको, कोई मनःपर्ययज्ञानको, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं। किन्तु वे न बलदेवत्वको उत्पन्न करते हैं, न वासुदेवत्वको उत्पन्न करते हैं, न चक्रवर्तित्वको उत्पन्न करते हैं। कोई तीर्थंकरत्वको उत्पन्न करते हैं और कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं, तथा सर्व दुःखोंके अन्तको प्राप्त होते हैं ।
तिरिक्खा मणुसा तिरिक्ख-मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ तिर्यंच व मनुष्य तिर्यंच व मनुष्य पर्यायसे मर करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ।। २२१॥ चत्तारि गदीओ गच्छंति-णिरयगदि तिरिक्खगदि मणुसगदि देवगदि चेदि ।
तिर्यच व मनुष्य अपनी पर्यायके साथ मर करके नरकगति, तिथंचगति, मनुष्यगति और देवगति इन चारों ही गतियोंमें जाते हैं ॥ २२२ ॥
णिरय-देवेसु उववण्णल्लया णिरय-देवा केइं पंचमुप्पाएंति- केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केई सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केई सम्मत्तमुप्पाएंति ॥ २२३ ॥
उक्त तिर्यंच और मनुष्य मर करके नारकी और देवोंमें उत्पन्न होते हुए नारक और देव पर्यायके साथ कोई पांचको उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, और कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ २२३ ॥
तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा मणुसा केई छ उप्पाएंति ॥ २२४ ॥
तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुए उक्त तिर्यंच व मनुष्य कोई आभिनिबोधिक आदि छहको उत्पन्न करते हैं ॥ २२४ ॥
मणुसेसु उववण्णल्लया तिरिक्ख-मणुस्सा जहा चउत्थपुढवीए भंगो ॥ २२५॥
मनुष्योंमें उत्पन्न हुए उक्त तिर्यंच व मनुष्य चतुर्थ पृथिवीसे निकलकर मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले जीवोंके समान आभिनिबोधिकज्ञान आदि दसको उत्पन्न करते हैं ॥ २२५ ॥
देवगदीए देवा देवहि उव्वट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ।।२२६।।
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