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३४८] छक्खंडागमे खुद्दाबंधो
[२, १, १० मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तक पंचेन्द्रिय जीव बन्धक ही हैं; क्योंकि, उनमें बन्धके कारणभूत मिथ्यात्वादि पाये जाते हैं। किन्तु अयोगिकेवली नियमसे अबन्धक हैं, क्योंकि, उनके उक्त मिथ्यात्व आदि सभी बन्धके कारणोंका अभाव हो चुका है। इसलिये यहां ‘पंचेन्द्रिय जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ' ऐसा कहा गया है ।
अणिदिया अबंधा ॥ १० ॥ अनिन्द्रिय जीव अबन्धक हैं ॥ १० ॥ अनिन्द्रियसे यहां शरीर व इन्द्रियोंसे रहित हुए सिद्धोंको ग्रहण किया गया है ।
कायाणुवादेण पुढवीकाइया बंधा आउकाइया बंधा तेउकाइया बंधा वाउकाइया बंधा वणप्फदिकाइया बंधा ॥ ११ ॥
कायमार्गणाके अनुसार पृथिवीकायिक जीव बन्धक हैं, अप्कायिक बन्धक हैं, तेजकायिक बन्धक हैं, वायुकायिक बन्धक हैं, और वनस्पतिकायिक बन्धक हैं ॥ ११ ॥
तसकाइया बंधा वि अत्थि अबंधा वि अत्थि ॥ १२ ॥ त्रसकायिक जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ॥ १२ ॥
कारण इसका यह है कि मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर सपोगिकेवली गुणस्थान तक त्रसकायिक जीवोंमें बन्धके कारणभूत मिथ्यात्वादि पाये जाते हैं, किन्तु अयोगिकेवलियोंमें वे नहीं पाये जाते हैं।
अकाइया अबंधा ॥ १३ ॥ शरीरसे रहित हुए सिद्ध जीव अबन्धक हैं ॥ १३ ॥ जोगाणुवादेण मणजोगि-वचिजोगि-कायजोगिणो बंधा ॥ १४ ॥ योगमार्गणाके अनुसार मनोयोगी, वचनयोगी और काययोगी जीव बन्धक हैं ॥ १४ ॥ अजोगी अबंधा ॥१५॥ योगसे रहित हुए अयोगी व सिद्ध जीव अबन्धक हैं ॥ १५ ॥ वेदाणुवादेण इत्थिवेदा बंधा, पुरिसवेदा बंधा, णqसयवेदा बंधा ॥ १६ ॥ वेदमार्गणाके अनुसार स्त्रीवेदी बन्धक हैं, पुरुषवेदी बन्धक हैं, और नपुंसकवेदी बन्धक हैं ।। अवगदवेदा बंधा वि अस्थि अबंधा वि अस्थि ॥ १७॥ .
अपगतवेदी जीव बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं ॥ १७ ॥
__ अनिवृत्तिकरणके अवेद भागसे लेकर सयोगिकेवली तक अपगतवेदी जीव बन्धक हैं, क्योंकि, उनके बन्धके कारणभूत कषाय और योग पाये जाते हैं। परन्तु उक्त अपगतवेदियोंमें अयोगिकेवलियोंके कोई भी बन्धका कारण शेष न रहनेसे वे अबन्धक हैं ।
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