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१, ९-९, २४३ ] जीवट्ठाण-चूलियाए देवाणमागदिपुव्वं गुणलाहो
[३४३ मणुसेसु उववण्णल्लया मणुस्सा तेसिमाभिणियोहियणाणं सुदणाणं णियमा अत्थि, ओहिणाणं सिया अस्थि सिया णस्थि । केई मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केवलणाणमुप्पाएंति । सम्मामिच्छत्तं णत्थि, सम्मत्तं णियमा अस्थि । केई संजमासंजममुप्पाएंति, संजमं णियमा उप्पाएंति । केई बलदेवत्तमुप्पाएंति, णो वासुदेवत्तमुप्पाएंति । केई चक्कवाट्टित्तमुप्पाएंति, केई तित्थयरत्तमुप्पाएंति, केइमंतयडा होदूण सिझंति बुझंति मुचंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमंतं परिविजाणति ॥ २४० ॥
उपर्युक्त देव वहांसे च्युत होकर मनुष्योंमें उत्पन्न होते हुए मनुष्य होते हैं। उनके आभिनिबोधिकज्ञान और श्रुतज्ञान नियमसे होते हैं। अवधिज्ञान कदाचित् होता है और कदाचित् नहीं भी होता है। कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं और कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं । उनके सम्यग्मिथ्यात्व नहीं होता, किन्तु सम्यक्त्व नियमसे होता है। कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, संयमको वे नियमसे उत्पन्न करते हैं। कोई बलदेवत्वको तो उत्पन्न करते हैं, किन्तु वासुदेवत्वको उत्पन्न नहीं करते । कोई चक्रवर्तित्वको उत्पन्न करते हैं, कोई तीर्थंकरत्वको उत्पन्न करते हैं, कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं, और सर्व दुःखोंके अन्तको प्राप्त होते हैं ॥ २४० ॥
सबट्टसिद्धिविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ।। सर्वार्थसिद्धिविमाणवासी देव देव पर्यायसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥२४१॥ एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ २४२ ।।। सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव देव पर्यायसे च्युत होकर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ।
मणुसेसु उववण्णल्लया मणुसा तेसिमाभिणियोहियणाणं सुदणाणं ओहिणाणं च णियमा अस्थि । केई मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केवलणाणं णियमा उप्पाएंति । सम्मामिच्छत्तं णत्थि, सम्मत्तं णियमा अस्थि । केई संजमासंजममुप्पाएंति संजमं णियमा उप्पाएंति । केई बलदेवत्तमुप्पाएंति, णो वासुदेवत्तमुप्पाएंति । केई चक्कवट्टित्तमुप्पाएंति, केइं तित्थयरत्तमुप्पाएंति । सव्वे ते णियमा अंतयडा होदूण सिझंति बुझंति मुच्चंति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमंतं परिविजाणंति ।। २४३ ॥
सर्वार्थसिद्धि विमानसे च्युत होकर जो मनुष्योंमें उत्पन्न होकर मनुष्य होते हैं उनके आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान ये नियमसे होते हैं। कोई मनःपर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, केवलज्ञानको वे नियमसे उत्पन्न करते हैं। उनके सम्यग्मिथ्यात्व नहीं होता, किन्तु सम्यक्त्व नियमसे होता है । कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, किन्तु संयमको वे नियमसे उत्पन्न करते हैं। कोई बलदेवत्वको उत्पन्न करते हैं, किन्तु वासुदेवत्वको उत्पन्न नहीं करते। कोई चक्रवर्तित्वको
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