________________
सिरि-भगवंत-पुप्फदंत-भूदबलि-पणीदो
छक्खंडागमो
तस्स
बिदियखंडे खुद्दाबंधे बंधग-संतपरूवणा
जे ते बंधगा णाम तेसिमिमो णिदेसो ॥ १ ॥ जो वे बन्धक जीव हैं उनका यहां यह निर्देश किया जाता है ॥ १॥
वे बन्धक नामबन्धक, स्थापनाबन्धक, द्रव्यबन्धक और भावबन्धकके भेदसे चार प्रकारके हैं। उनमें पूर्वोक्त जीवाजीवादि आठ भंगोंमें प्रवर्तमान 'बन्धक' यह शब्द नामबन्धक है । काष्ठकर्म, पोत्तकर्म और लेप्यकर्म आदिमें तदाकार और अतदाकारस्वरूपसे ' ये बन्धक हैं' इस प्रकारका जो आरोप किया जाता है उसका नाम स्थापनाबन्धक है।
द्रव्यबन्धक दो प्रकारके हैं- आगमद्रव्यबन्धक और नोआगमद्रव्यबन्धक । इनमें बन्धप्राभृतके ज्ञाता होकर भी जो वर्तमानमें तद्विषयक उपयोगसे रहित जीव हैं उनको आगमद्रव्यबन्धक कहा जाता है। नोआगमद्रव्यबन्धक तीन प्रकारके हैं- ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यबन्धक, भावी नोआगमद्रव्यबन्धक और तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यबन्धक। इनमें बन्धप्राइतके ज्ञाताका जो शरीर है वह ज्ञायकशरीर नोआगमद्रव्यबन्धक कहलाता है। जो जीव भविष्यमें बन्धप्राभृतके ज्ञातारूपसे परिणत होनेवाला है उसे भावी नोआगमद्रव्यबन्धक कहते हैं। तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यबन्धक कर्मद्रव्यबन्धक और नोकर्मद्रव्यबन्धकके भेदसे दो प्रकारका है। इनमें नोकर्मद्रव्यबन्धक भी तीन प्रकारका हैसचित्त नोकर्मद्रव्यबन्धक, अचित्त नोकर्मद्रव्यबन्धक और मिश्र नोकर्मद्रव्यबन्धक । उनमें हाथी आदि सचेतन प्राणियोंके बन्धक सचित्त नोकर्मद्रव्यबन्धक कहलाते हैं। सूप व चटाई आदि अजीव वस्तुओंके बन्धकोंको अचित्त नोकर्मद्रव्यबन्धक कहा जाता है । आभरणादि निर्जीव वस्तुओंसे संयुक्त हाथी आदि सचेतन प्राणियोंके बन्धकोंको मिश्र नोकर्मबन्धक समझना चाहिये । कर्मद्रव्यबन्धक ईर्यापथकर्मव्यबन्धक और साम्परायिककर्मद्रव्यबन्धकके भेदसे दो प्रकारके हैं । जो अकषाय जीव स्थिति व अनुभागबन्धसे रहित केवल योगके निमित्तसे प्रकृति व प्रदेशरूप कर्मके बन्धक हैं वे ईर्यापथकर्मद्रव्यबन्धक और जो सकषाय प्राणी संसारके कारणभूत कर्मके बन्धक हैं वे साम्परायिककर्मबन्धक
छ. ४४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org