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In the **Chakkhandaga** (Six-Part) **Gama** (Scripture), it is stated that beings (**jiva**) born in the human realm (**manushya**) experience ten different states of existence:
1. **Abhinibodhik** (Intuitive) knowledge
2. **Shruta** (Scriptural) knowledge
3. **Avadhi** (Clairvoyance) knowledge
4. **Man:paryaya** (Mind-perception) knowledge
5. **Kevala** (Omniscient) knowledge
6. **Samyagmithyatva** (Right and Wrong Belief)
7. **Samyaktva** (Right Belief)
8. **Sanjama-sanjama** (Control and Lack of Control)
9. **Sanjama** (Control)
However, they do not attain the states of:
1. **Baldev** (A type of celestial being)
2. **Vasudeva** (Another type of celestial being)
3. **Chakravartin** (Universal Monarch)
4. **Tithankara** (Founder of a Jain Tirthankara lineage)
Those who are **antarkrit** (internally purified) become **siddha** (liberated), **buddha** (enlightened), **muccita** (freed), attain **parinirvana** (final liberation), and experience the end of all suffering.
The **Soudharma** (a celestial realm) and **Aishana** (another celestial realm) realms, up to the **Shatar-sahasrar** (hundred thousand) **kalpa** (eon) of the **Sadar-sahasrar** (thousand thousand) **kalpa** (eon), have a similar path of descent as other celestial beings.
The celestial beings residing in the **Anata** (a celestial realm) and other realms up to the **Navageveyaka** (nine-storeyed) **vimana** (celestial vehicle) realms, when they fall from their celestial state, descend through how many paths?
They descend through only one path, the human path (**manushya-gadi**).
The celestial beings residing in the **Anata** (a celestial realm) and other realms up to the **Navageveyaka** (nine-storeyed) **vimana** (celestial vehicle) realms, when they fall from their celestial state and are born as humans, experience all ten states of existence.
The celestial beings residing in the **Anudisha** (a celestial realm) and other realms up to the **Avarai** (a celestial realm) **vimana** (celestial vehicle) realms, when they fall from their celestial state, descend through how many paths?
They descend through only one path, the human path (**manushya-gadi**).
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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-९, २३३
मणुसे उवण्णलया मणुसा केई दस उप्पारंति- केइमाभिणिबोहियणाणमुप्पाएंति, केई सुदणाणमुप्पाएंति, केइमोहिणाणमुप्पाएंति, केई मणपज्जवणाणमुप्पाएंति, केई केवलणाणमुप्पाएंति, केई सम्मामिच्छत्तमुप्पाएंति, केई सम्मत्तमुप्पाएंति, केई संजमा - संजममुपाएंति, केई संजममुप्पाएंति | णो बलदेवत्तं उत्पाति, णो वासुदेव त्तमुप्पा एंति, णो चक्कवट्टित्तमुपाति, णो तित्थयरत्तमुप्पाएंति के मंतयडा होदूण सिज्यंति बुज्झति मुच्चति परिणिव्वाणयंति सव्वदुःखाणमतं परिविजाणंति ।। २३३ ॥
३४२ ]
उक्त भवनवासी आदि देव - देवियां मनुष्योंमें उत्पन्न होकर मनुष्य पर्याय के साथ कितने ही दसको उत्पन्न करते हैं- कोई आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई श्रुतज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई अवधिज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई मन:पर्ययज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई केवलज्ञानको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न करते हैं, कोई सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, कोई संयमासंयमको उत्पन्न करते हैं, और कोई संयमको उत्पन्न करते हैं । किन्तु वे न बलदेवको उत्पन्न करते हैं, न वासुदेवको उत्पन्न करते हैं, न चक्रवर्तित्वको उत्पन्न करते हैं, और न तीर्थंकरत्वको उत्पन्न करते हैं । कोई अन्तकृत होकर सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, परिनिर्वाणको प्राप्त होते हैं, और सर्व दुःखों के अन्तको प्राप्त होते हैं ॥ २३३ ॥
सोहम्मीसाण जाव सदर - सहस्सारकप्पवासियदेवा जधा देवगदिभंगो ॥ २३४ ॥ सौधर्म - ऐशानसे लेकर शतार -सहस्रार कल्प तकके देवोंकी आगति सामान्य देवगति के समान है || २३४॥
आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गढ़ीओ आगच्छंति ? ।। २३५ || एक्कं हि चैव मणुसगदिमागच्छंति || २३६ ॥
आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक विमानवासी देवों तक देव पर्यायसे च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३५ ॥ उपर्युक्त आनतादि नौ ग्रैवेयक तकके विमानवासी देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३६ ॥
मणुसे उबवण्णलया मणुस्सा केई सव्वे उप्पाएंति || २३७ ||
आनतादि नौ ग्रैवेयक तकके उपर्युक्त विमानवासी देव देव पर्यायसे च्युत होकर मनुष्यों में उत्पन्न होते हुए मनुष्य पर्यायके साथ कोई सत्र ही गुणोंको उत्पन्न करते हैं ॥ २३७॥
अणुदिस जाव अवराइद विमाणवासियदेवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति ? ॥ २३८ || एक्कं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति || २३९ ॥
अनुदिशोंसे लेकर अपराजित विमानवासी देवों तक देव पर्यायसे च्युतं होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २३८ ॥ उपर्युक्त विमानवासी देव वहांसे च्युत होकर केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ २३९ ॥
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