________________
१, ९-९, ८० ]
जीवट्ठाण - चूलियाए रइयाणं गदिपरूपणा
केई सासणसम्मत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ७० ॥
कितने ही सासादनसम्यक्त्व सहित जाकर सासादनसम्यक्त्व के साथ ही वहांसे निकलते
हैं ॥ ७० ॥
[ ३२३
केई सासणसम्मत्ते अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ७१ ॥
कितने ही सासादन सम्यक्त्व सहित जाकर सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ७१ ॥ अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ७२ ॥
hi सम्म
कितने ही सम्यक्त्वसहित जाकर मिथ्यात्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ७२ ॥ अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ७३ ॥
hi सम्म
कितने ही सम्यक्त्वसहित जाकर सासादनसम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ७३ ॥ केई सम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णींति ॥ ७४ ॥
उक्त मनुष्य व मनुष्य पर्याप्त एवं सौधर्मादिक स्वर्गेके देवोंमें कितने ही सम्यक्त्वसहित जाकर सम्यक्त्वके साथ ही वहांसे निकलते हैं ॥ ७४ ॥
अदिस जाव सव्वट्टसिद्धिविमाणवासियदेवेसु सम्मत्तेण अधिगदा णियमा सम्मत्तेण चेव णींति ।। ७५ ।।
अनुदिशोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तक के विमानवासी देव सम्यक्त्वके साथ वहां प्रविष्ट होकर नियमसे सम्यक्त्वसहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ७५ ॥
रइयमिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी णिरयादो उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ ७६ ॥
नारकी मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ ७६ ॥
दो गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदिं चैव मणुसगदिं चैव ॥ ७७ ॥
उक्त नारकी जीव नरकसे निकलकर दो गतियोंमें आते हैं- तिर्यंचगतिमें और मनुष्यगतिमें भी ॥ ७७ ॥
तिरिक्खेसु आगच्छंता पंचिदिएस आगच्छंति, णो एइंदिय - विगलिंदिए ॥ ७८ ॥ तिर्यंचों में आनेवाले उक्त नारकी जीव पंचेन्द्रियोंमें आते हैं, एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियोंमें नहीं आते ॥ ७८ ॥
Jain Education International
पंचिदिएस आगच्छंता सण्णीसु आगच्छंति, णो असण्णी ॥ ७९ ॥
पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें आते हुए वे नारकी जीव संज्ञियोंमें आते हैं, न कि असंज्ञियोंमें ॥ ७९ ॥ सणी आगच्छंता गन्भोवकंतिएस आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु || ८० ||
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org