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२, ९-९, १७६] जीवट्ठाण-चूलियाए मणुस्साणं गदिपरूपणा
[३३३ देवेसु गच्छंता भवगवासिय-बागवेंतर-जोदिसियदेवेसु गच्छंति ॥ १६८ ॥ देवोंमें जाते हुए वे भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जाते हैं ॥ १६८ ॥
मणुसा सम्मामिच्छाइट्ठी असंखेज्जवासाउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण मणुसा मणुसेहि णो कालं कति ॥१६९॥
मनुष्य सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्य सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके साथ मनुष्य पर्यायमें मरण नहीं करते ॥ १६९॥
मणुसा सम्माइट्ठी असंखेज्जवासाउआ मणुसा मणुसेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥१७० ॥
___ मनुष्य सम्यग्दृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क मनुष्य पर्यायके साथ मर करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ॥ १७० ॥
एकं हि चेव देवगदि गच्छंति ॥ १७१ ॥ उपर्युक्त मनुष्य मर करके एक मात्र देवगतिको ही जाते हैं ॥ १७१ ॥ देवेसु गच्छंता सोहम्मीसाणकप्पवासियदेवेसु गच्छंति ॥ १७२ ॥ देवोंमें जानेवाले उपर्युक्त मनुष्य सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥१७२ ॥
देवा मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी देवा देवेहि उबट्टिद-चुदसमाणा कदि गदिओ आगच्छंति ? ॥ १७३ ॥
देव मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देव देव पर्यायके साथ उद्वर्तित और च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ १७३ ॥
दुवे गदीओ आगच्छंति तिरिक्खगदि मणुसुगदिं चेव ॥ १७४ ॥
देव मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि मर करके तिर्यंचगति और मनुष्यगति इन दो ही गतियोंमें आते हैं ॥ १७४ ॥
तिरिक्खेसु आगच्छंता एइंदिय-पंचिंदिएसु आगच्छंति, णो विगलिंदिएसु ॥१७५॥
तिर्यंचोंमें आते हुए वे एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें आते हैं, विकलेन्द्रियोंमें नहीं आते ॥ १७५ ॥
एइंदिएसु आगच्छंता बादरपुढवीकाइय-बादरआउकाइय-बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरपज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ १७६ ॥
एकेन्द्रियोंमें आते हुए वे बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १७६ ॥
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