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३३६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-९, १९८ . अणुदिस जाव सब्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवा असंजदसम्माइट्ठी देवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १९८॥
अनुदिशोंसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके विमानवासी असंयतसम्यग्दृष्टि देव देव पर्यायके साथ च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ १९८ ॥
एक्कं हि मणुसगदिमागच्छति ॥ १९९ ॥ उपर्युक्त देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ १९९॥ मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवक्कंतिएमु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ २०० ॥ मनुष्योंमें आते हुए वे गर्भजोमें आते हैं, सम्मूर्छनोंमें नहीं आते ॥ २०० ॥ गब्भोवक्कंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥२०१॥ गर्भज मनुष्योंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ २०१॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥
गर्भज पर्याप्त मनुष्योंमें आते हुए वे देव संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ २०२ ॥
अधो सत्तमाए पुढवीए णेरइया णिरयादो गेरइया उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ २०३ ॥
नीचे सातवीं पृथिवीके नारकी नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥२०३ ॥ एक्कं हि चेव तिरिक्खगदिमागच्छंति ति ॥ २०४ ॥ सातवीं पृथिवीसे निकलते हुए नारकी जीव केवल एक तिर्यंचगतिमें ही आते हैं ॥२०॥
तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा छण्णो उप्पाएंति- आभिणिबोहियणाणं णो उप्पाएंति, सुदणाणं णो उप्पाएंति, ओहिणाणं णो उप्पाएंति, सम्मामिच्छत्तं णो उप्पाएंति, सम्मत्तं णो उप्पाएंति, संजमासंजमं णो उप्पाएंति ॥ २०५॥
सातवीं पृथिवीसे तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुए उक्त नारकी तिर्यंच होकर इन छहको उत्पन्न नहीं करते हैं-- आभिनिबोधिकज्ञानको उत्पन्न नहीं करते, श्रुतज्ञानको उत्पन्न नहीं करते, अवधि. ज्ञानको उत्पन्न नहीं करते, सम्यग्मिथ्यात्वको उत्पन्न नहीं करते, सम्यक्त्वको उत्पन्न नहीं करते, और संयमासंयमको उत्पन्न नहीं करते ॥ २०५ ॥
छट्ठोए पुढवीए णेरइया णिरयादो गैरइया उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥२०६॥
छठी पृथिवीके नारकी नारकी होते हुए नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥
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