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१,९-९, १९७) जीवट्ठाण-चूलियाए देवाणं गदिपरूपणा
[३३५ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥
गर्भज पर्याप्त मनुष्योंमें आते हुए वे संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ १८९ ॥
भवणवासिय-वाण-तर-जोदिसिय-सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवेसु देवगदिभंगो ॥
भवनवासी, वानव्यन्तर, ज्योतिषी तथा सौधर्म और ऐशान कल्पवासी देवोंकी आगति सामान्य देवगतिके समान है ॥ १९० ।।
सणक्कुमारप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवेसु पढमपुढवीभंगो। णवरि चुदा त्ति भाणिदव्यं ॥ १९१ ॥
सनत्कुमारसे लगाकर शतार-सहस्रार कल्पवासी देवोंकी आगति प्रथम पृथिवीके नारक जीवोंकी आगतिके समान है। विशेषता इतनी है कि यहां उद्वर्तित के स्थानपर ' च्युत' ऐसा कहना चाहिए ॥ १९१ ।।
आणदादि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु मिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंजदसम्माइट्ठी देवा देवेहि चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ १९२॥
आनत कल्पसे लेकर नव ग्रैवेयक विमानवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देव देव पर्यायके साथ च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ १९२ ॥
एकं हि चेव मणुसगदिमागच्छंति ॥ १९३ ॥ उपर्युक्त देव केवल एक मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ १९३ ॥ मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवतंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १९४ ॥ मनुष्योंमें आते हुए वे गर्भजोमें आते हैं, न कि सम्मूर्छनोंमें ॥ १९४ ॥ गब्भोवकंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ।। १९५ ॥ गर्भोपक्रान्तिक मनुष्योंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १९५॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥
गर्भज पर्याप्त मनुष्योंमें आते हुए वे देव संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ १९६ ॥
आणद जाप णवगेवज्जविमाणवासियदेवा सम्मामि छाइड्डी सम्मामिच्छत्तगुणेण देवा देवेहि णो चयंति ॥ १९७ ॥
आनत कपसे लगाकर नौ ग्रैवेयक तकके विमानबासी सम्यग्मिथ्यादृष्टि देव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित देव पर्यायके साथ च्युत नहीं होते ।। १९७ ॥
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