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३३४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१,९-९, १७७ पंचिंदिएसु आगच्छंता सण्णीसु आगच्छंति, णो असण्णीसु ॥ १७७ ॥ पंचेन्द्रियोंमें आते हुए वे संज्ञी तिर्यंचोंमें आते हैं, असंज्ञियोंमें नहीं आते ॥ १७७ ॥ असण्णीसु आगच्छंता गब्भोवर्कतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुन्छिमेसु ॥ १७८ ॥ संज्ञी तिर्यंचोंमें आते हुए वे गर्भजोंमें आते हैं, समूर्च्छनोंमें नहीं आते ॥ १७८ ॥ गम्भोवकंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएमु ॥ १७९ ॥ गर्भजोंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १७९ ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥ पर्याप्तकोंमें आते हुए वे संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवतंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १८१॥
मनुष्योंमें आते हुए वे मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देव गर्भजोमें आते हैं, सम्मूर्छनोंमें नहीं आते ॥ १८१ ॥
गम्भोवतंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएमु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ १८२ ॥ गर्भज मनुष्योंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १८२ ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएमु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥
पर्याप्तक मनुष्योंमें आते हुए वे संख्यातवर्षायुष्कोंमें आते हैं, असंख्यातवर्षायुष्कोंमें नहीं आते ॥ १८३ ॥
देवा सम्मामिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तगुणेण देवा देवेहि णो उब्बटुंति, णो चयंति ॥
देव सम्यग्मिथ्यादृष्टि सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान सहित देव पर्यायके साथ न उद्वर्तित होते हैं और न च्युत होते हैं ॥ १८४ ॥
देवा सम्माइट्ठी देवा देवेहि उव्वट्टिद-चुदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ?॥ देव सम्यग्दृष्टि देव देव पर्यायके साथ उद्वर्तित और च्युत होकर कितनी गतियोंमें आते हैं?॥ एक हि चेव मणुसगदिमागच्छति ॥ १८६ ॥ देव सम्यग्दृष्टि मर करके एक मात्र मनुष्यगतिमें आते हैं ॥ १८६॥ मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवतंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ १८७॥ मनुष्योंमें आते हुए वे गर्भजोमें आते हैं, सम्मूर्च्छनोंमें नहीं आते ॥ १८७ ॥ गम्भोवतंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ।। १८८॥ गर्भज मनुष्योंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ १८८॥
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