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१,९-९, १०० ] जीवट्ठाण-चूलियाए णेरइयाणं गदिपरूपणा
[३२५ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवासाउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवासाउएसु ॥
गर्भज पर्याप्त मनुष्योंमें आते हुए वे संख्यात वर्षकी आयुवालोंमें आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नहीं आते ॥ ९१ ॥
एवं छसु उवरिमासु पुढवीसु णेरइया ॥ ९२॥ इस प्रकारसे ऊपरकी छह पृथिवियोंके नारकी जीव नरकसे निर्गमन करते हैं ॥ ९२ ॥
अधो सत्तमाए पुढवीए रइया मिच्छाइट्ठी णिरयादो उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छंति ? ॥ ९३ ॥
नीचे सातवीं पृथिवीके नारक मिथ्यादृष्टि नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं। एकं तिरिक्खगदिं चेव आगच्छंति ॥ ९४ ॥ सातवीं पृथिवीसे निकलते हुए नारक मिथ्यादृष्टि केवल एक तिर्यंचगतिमें ही आते हैं।
कारण यह कि एक मात्र तिर्यंच आयुको छोड़कर अन्य किसी भी आयुकर्मका उनके बन्ध नहीं होता है।
तिरिक्खेसु आगच्छंता पंचिंदिएसु आगच्छंति, णो एइंदिय-विगलिंदिएसु ॥९५॥
तिर्यंचोंमें आनेवाले उक्त नारक जीव पंचेन्द्रियोंमें ही आते हैं, एकेन्द्रियों और विकलेन्द्रियोंमें नहीं आते ॥ ९५ ॥
पंचिंदिएसु आगच्छंता सण्णीसु आगच्छंति, णो असण्णीसु ॥ ९६॥ पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें आते हुए वे संज्ञियोंमें आते हैं, असंज्ञियोंमें नहीं आते ॥ ९६ ॥ सणीसु आगच्छंता गब्भोवतंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥९७ ॥ पंचेन्द्रिय संज्ञी तिर्यंचोंमें आते हुए वे गर्भजोंमें आते हैं, सम्मूर्छनोंमें नहीं आते ॥९७॥ गब्भोवऋतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएम् आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥९८॥ पंचेन्द्रिय संज्ञी गर्भज तिर्यंचोंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवस्साउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउएसु ॥
पंचेन्द्रिय संज्ञी गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त तिर्यंचोंमें आते हुए वे संख्यात वर्षकी आयुवालों में आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नहीं आते ॥ ९९ ॥ ।
सत्तमाए पुढवीए णेरड्या सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी अप्पप्पणो गुणेण णिरयादो णो उव्वाम॒िति ॥ १०॥
___ सातवीं पृथिवीके नारक सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि अपने अपने गुणस्थानके साथ नरकसे नहीं निकलते हैं ॥ १०० ॥
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