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१, ९-९, ११८] जीवट्ठाण-चूलियाए तिरिक्खाणं गदिपरूपणा
३२७ तिर्यंच और मनुष्योंमें जाते हुए वे सभी तिर्यंच और सभी मनुष्योंमें जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंच और मनुष्योंमें नहीं जाते ॥ ११० ॥
देवेसु गच्छंता भवणवासिय-वाण-तरदेवेसु गच्छंति ।। १११ ।। देवोंमें जाते हुए वे भवनवासी और वानव्यन्तर देवोंमें जाते हैं ॥ १११ ॥
पंचिंदियतिरिक्ख-सण्णी असण्णी अपजत्ता पुढवीकाइया आउकाइया वा वणप्फइकाइया णिगोदजीवा बादरा सुहुमा बादरवणप्फदिकाइया पत्तेयसरीरा पज्जत्ता अपज्जत्ता बीइंदिय-तीइंदिय-चउरिदिय-पज्जत्तापज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ ११२ ॥
__पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञी और असंज्ञी अपर्याप्त, पृथिवीकायिक, जलकायिक व वनस्पतिकायिक, निगोद जीव बादर और सूक्ष्म, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर पर्याप्त व अपर्याप्त तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय व चतुरिन्द्रिय पर्याप्त और अपर्याप्त तिर्यंच तिर्यंच पर्यायके साथ मर करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ॥ ११२ ॥
दुवे गदीओ गच्छंति तिरिक्खगदि मणुसगदि चेदि । ११३ ॥ उपर्युक्त तिर्यंच जीव तिर्यंचगति और मनुष्यगति इन दो गतियोंमें जाते हैं ॥ ११३॥
तिरिक्ख-मणुस्सेसु गच्छंता सबतिरिक्ख-मणुस्सेसु गच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउएसु गच्छंति ॥ ११४ ॥
तिर्यंच और मनुष्योंमें जाते हुए वे सभी तिर्यंच और सभी मनुष्योंमें जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचों और मनुष्योंमें नहीं जाते हैं ॥ ११४ ॥
तेउकाइया वाउकाइया बादरा सुहुमा पज्जत्ता अपज्जत्ता तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ ११५॥
अग्निकायिक और वायुकायिक बादर व सूक्ष्म तथा पर्याप्तक व अपर्याप्तक तिर्यंच तिर्यंच पर्यायके साथ मर करके कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ॥ ११५ ॥
एकं चेव तिरिक्खगदिं गच्छति ॥ ११६ ॥ उपर्युक्त अग्निकायिक व वायुकायिक तिर्यंच एक मात्र तिर्यंचगतिमें ही जाते हैं ॥११६॥ तिरिक्खेसु गच्छंता सव्यतिरिक्खेसु गच्छंति, णो असंखेञ्जवस्साउएसु गच्छंति ।।
तिर्यंचोंमें जाते हुए वे सभी तिर्यंचोंमें जाते हैं, किन्तु असंख्यात वर्षकी आयुवाले तिर्यंचोंमें नहीं जाते ॥ ११७ ॥
तिरिक्खसासणससम्माइट्ठी संखेज्जवस्साउआ तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ॥११८ ॥
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