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१, ९-९, १३७ ] जीवट्ठाण-चूलियाए तिरिक्खाणं गदिपरूपणा
[ ३२९ देवेसु गच्छंता भवणवासियप्पहुडि जाव सदर-सहस्सारकप्पवासियदेवेसु गच्छंति ॥
देवोंमें जाते हुए वे संख्यातवर्षायुष्क सासादनसम्यग्दृष्टि तिर्यंच भवनवासी देवोंसे लगाकर शतार-सहस्रार तकके कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥ १२९॥
तिरिक्खा सम्मामिच्छाइट्ठी खेज्जवस्साउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण तिरिक्खा तिरिक्खेसु णो कालं करेंति ॥ १३०॥
___ तिर्यंच सम्यग्मिथ्यादृष्टि संख्यातवर्षायुष्क तिर्यंच जीव तिर्यंचोंमें सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानके साथ मरणको प्राप्त नहीं होते ॥ १३० ॥
तिरिक्खा असंजदसम्मादिट्ठी संखेज्जवस्साउआ तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १३१ ॥
तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि संख्यातवर्षायुष्क तिर्यंच जीव तिर्यंच पर्यायके साथ मरकर कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ॥ १३१ ॥
एक्कं हि चेव देवगदिं गच्छंति ॥ १३२ ॥ उपर्युक्त तिर्यंच जीव मरकर एक मात्र देवगतिको ही जाते हैं ॥ १३२ ॥ देवेसु गच्छंता सोहम्मीसाणप्पहुडि जाव आरणच्चुदकप्पवासियदेवेसु गच्छति ॥
देवोंमें जाते हुए वे सौधर्म-ऐशान खर्गसे लगाकर आरण-अच्युत कल्प तकके कल्पवासी देवोंमें जाते हैं ॥ १३३॥
तिरिक्खमिच्छाइट्ठी सासणसम्माइट्ठी असंखेज्जवासाउवा तिरिक्खा तिरिक्खेहि कालगदसमाणा कदि गदीओ गच्छंति ? ॥ १३४ ॥
तिर्यंच मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क तिर्यंच तिर्यंच पर्यायके साथ मरकर कितनी गतियोंमें जाते हैं ? ॥ १३४ ॥
एक हि चेव देवगदि गच्छंति ॥१३५ ॥ उपर्युक्त तिर्यंच एक मात्र देवगतिमें ही जाते हैं ॥ १३५॥ देवेसु गच्छंता भवणवासिय-वाणवेंतर-जोदिसियदेवेसु गच्छंति ॥ १३६ ॥ देवोंमें जाते हुए वे भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवोंमें जाते हैं । १३६ ॥
तिरिक्खा सम्मामिच्छाइट्ठी असंखेज्जवासाउआ सम्मामिच्छत्तगुणेण तिरिक्खा तिरिक्खेहि णो कालं करेंति ॥ १३७ ॥
तिर्यंच सम्यग्मिथ्यादृष्टि असंख्यातवर्षायुष्क तिर्यंच जीव तिर्यंच पर्यायके साथ सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानमें मरणको प्राप्त नहीं होते ॥ १३७ ॥ छ. १२
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