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३२४] छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ९-९, ८१ पंचेन्द्रिय तिर्यंच संज्ञियोंमें आनेवाले उक्त नारकी जीव गर्भजोंमें आते हैं, सम्मूर्छनोंमें नहीं आते ॥ ८० ॥
गब्भोवतंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ ८१॥
पंचेन्द्रिय, संज्ञी व गर्भज तिर्यंचोंमें आनेवाले उक्त नारकी जीव पर्याप्तकोंमें ही आते हैं; अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ ८१ ॥
पज्जत्तएमु आगच्छंता संखेज्जवस्साउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउएसु ॥
पंचेन्द्रिय, संज्ञी, गर्भज एवं पर्याप्त तिर्यंचोंमें आनेवाले उक्त नारकी जीव संख्यात वर्षकी आयुवाले जीवोंमें ही आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नहीं आते ॥ ८२ ॥
मणुस्सेसु आगच्छंता गब्भोवततिरसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ ८३॥ मनुष्योंमें आनेवाले उक्त नारकी जीव गर्भजोंमें ही आते हैं, सम्मूर्च्छनोंमें नहीं आते ॥८३॥ गब्भोवकंतिएसु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ ८४ ॥ गर्भज मनुष्योंमें आते हुए वे पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं आते ॥ ८४ ॥ पज्जत्तएसु आगच्छंता संखेज्जवस्साउएसु आगच्छंति, णो असंखेज्जवस्साउएसु ॥
गर्भज पर्याप्त मनुष्यों में भी आनेवाले वे संख्यात वर्षकी आयुवालोंमें आते हैं, असंख्यात वर्षकी आयुवालोंमें नहीं आते ॥ ८५॥
णेरइया सम्मामिच्छाइट्ठी सम्मामिच्छत्तगुणेण णिरयादो णो उव्वट्ठिति ॥ ८६ ॥ नारकी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वके साथ नरकसे नहीं निकलते हैं ॥ ८६ ॥ णेरइया सम्माइट्ठी णिरयादो उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीओ आगच्छति ॥८७॥ नारक सम्यग्दृष्टि जीव नरकसे निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ ८७ ॥ एकं मणुसगदिं चेव आगच्छंति ॥ ८८॥ नारक सम्यग्दृष्टि जीव नरकसे निकलकर एक मात्र मनुष्यगतिमें ही आते हैं ॥ ८८॥
इसका कारण यह है कि जिन नारक सम्यग्दृष्टियोंके मनुष्यायुको छोड़कर अन्य आयुका सत्त्व है उनका सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलना सम्भव नहीं है।
मणुसेसु आगच्छंता गब्भोवतंतिएसु आगच्छंति, णो सम्मुच्छिमेसु ॥ ८९॥
मनुष्योंमें आनेवाले नारक सम्यग्दृष्टि जीव गर्भोपक्रान्तिकोंमें आते हैं, सम्मूर्छनोंमें नहीं आते ॥ ८९ ॥
गम्भोवकंतिएमु आगच्छंता पज्जत्तएसु आगच्छंति, णो अपज्जत्तएसु ॥९॥ गर्भज मनुष्योंमें आनेवाले नारक सम्यग्दृष्टि जीव पर्याप्तकोंमें आते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं
आते ॥ ९० ॥
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