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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं .
[१,९-९, ६० और कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंका अन्य गुणस्थानमें जाना सम्भव नहीं है।
एवं पंचिंदियतिरिक्खा पंचिंदिय-तिरिक्ख-पज्जत्ता ॥६०॥
इसी प्रकारसे पंचेन्द्रिय तिर्यंच पर्याप्त जीव तिर्यंचगतिमें प्रवेश और वहांसे निर्गमन करते हैं ॥ ६० ॥
पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीयो मणुसिणीयो भवणवासिय-चाणवेंतर-जोदिसियदेवा देवीओ सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवीओ च मिच्छत्तेण अधिगदा केई मिच्छत्तेण णीति ॥६॥
___पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती, मनुष्यनियां, भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देव तथा उनकी देवियां एवं सौधर्म और ऐशान कल्पवासिनी देवियां; ये मिथ्यात्वसहित उस उस गतिमें प्रवेश करके उनमेंसे कितने ही मिथ्यात्वसहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ६१ ॥
केई मिच्छत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ६२ ॥
उनमें कितने ही मिथ्यात्वसहित प्रवेश करके वहांसे सासादनसम्यक्त्वके साथ निकलते हैं ॥ ६२ ॥
केई मिच्छत्तेग अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ६३ ॥ कितने ही मिथ्यात्वसहित प्रवेश करके सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६३ ॥ केई सासणसम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ६४ ॥
उपर्युक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंच योनिमती आदि जीवोंमें कितने ही सासदनसम्यक्त्वके साथ उन गतियोंमें जाकर मिथ्यात्वसहित वहांसे निकलते हैं ॥ ६४ ॥
केई सासणसम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ६५ ॥ कितने ही सासादनसम्यक्त्वके साथ जाकर सम्यक्त्वसहित वहांसे निकलते हैं ।। ६५॥
मणुसा मणुस-पज्जत्ता सोधम्मीसाणप्पहुडि जाव णवगेवज्जविमाणवासियदेवेसु केई मिच्छत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ६६ ॥
मनुष्य, मनुष्य-पर्याप्त तथा सौधर्म-ऐशानसे लेकर नौ ग्रैवेयक तक विमानवासी देवोंमें कितने ही जीव मिथ्यात्वसहित जाकर मिथ्यात्वके साथ ही वहांसे निकलते हैं ॥ ६६ ॥
केई मिच्छत्तेण अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ६७॥ कितने ही मिथ्यात्वसहित जाकर सासादनसम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६७ ॥ केई मिच्छत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ६८॥ कितने ही मिथ्यात्वसहित जाकर सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६८ ॥ केई सासगसम्मत्तेण अधिगदा मिच्छत्तेण णीति ॥ ६९ ॥ कितने ही सासादनसम्यक्त्व सहित जाकर मिथ्यात्वके साथ वहांसे निकलते हैं ॥ ६९ ।।
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