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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ९-९, ४३
यहां चूंकि ऊपरके देवोंका आगमन नहीं होता है, इसलिये उनके महर्द्धिदर्शन सम्भव नहीं है। साथ ही उनके जिनमहिमा दर्शन भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, वे न तो तीर्थंकरके किसी कल्याणक महोत्सव में जाते हैं और न अष्टाह्निक महोत्सवके समय नन्दीश्वर द्वीप में भी जाते हैं । अणुद्दिस जाव सव्वसिद्धिविमाणवासियदेवा सव्वे ते पियमा सम्माइडि पण्णत्ता ॥ ४३ ॥
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अनुदिशोंसे लगाकर सर्वार्थसिद्धि तक के विमानवासी देव सब ही नियमसे सम्यग्दृष्टि होते हैं, ऐसा परमागममें कहा गया है || ४३ ||
रया मिच्छत्ते अधिगदा केई मिच्छत्तेण णीति ॥ ४४ ॥
मिथ्यात्व के साथ नरक में प्रविष्ट हुए नारकियोंमेंसे कितने ही मिथ्यात्व सहित ही नरकसे निकलते हैं ॥ ४४ ॥
के मिच्छत्ते अधिगदा सासणसम्मत्तेण णीति ॥ ४५ ॥
कितने ही मिथ्यात्व सहित नरकमें जाकर सासादन सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं |
अभिप्राय यह है कि मिथ्यात्वके साथ नरकगतिमें प्रविष्ट होकर और वहां अपनी आयु प्रमाण रह करके अन्तमें प्रथमोपशम सम्यक्त्वको प्राप्त करनेवाले कितने ही नारकी जीव सासादन-सम्यक्त्वके साथ वहांसे निकलते हैं ।
केई मिच्छत्त्रेण अधिगदा सम्मत्तेण णीति ॥ ४६ ॥
कितने ही जीव मिथ्यात्व सहित नरकमें जाकर वहांसे सम्यक्त्वके साथ निकलते हैं ॥ ४६. सम्मत्तेण अधिगदा सम्मत्तेण चैव णीति ॥ ४७ ॥
सम्यक्त्व सहित नरकमें जानेवाले जीव सम्यक्त्व सहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ४७ ॥
अभिप्राय यह है कि कितने ही क्षायिकसम्यग्दृष्टि और कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि जीव पूर्वबद्ध आयु कर्मके वश प्रथम नरकमें जाते हैं और वहांसे सम्यक्त्वके साथ ही निकलते हैं, क्योंकि, . उनके गुणस्थानका परिवर्तन सम्भव नहीं है
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एवं पढमा पुढवी रइया ॥ ४८ ॥
इस प्रकार से प्रथम पृथिवीमें नारकी जीव प्रवेश करते हैं और वहांसे निकलते हैं ॥ ४८ ॥ विदिया जाव छट्टीए पुढवीए फेरइया मिच्छत्तेण अधिगदा केई मिच्छत्तेण णीति ॥ ४९ ॥
दूसरी पृथिवीसे लेकर छठी पृथिवी तक कितने ही नारकी जीव मिथ्यात्व सहित प्रविष्ट होकर मिथ्यात्व सहित ही वहांसे निकलते हैं ॥ ४९ ॥
मिच्छत्ते अधिगदा केई सासणसम्मत्तेण णीति ।। ५० ।।
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