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३१८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-९, २६ गब्भोवतंतिएसु उप्पादेता पज्जत्तएसु उप्पादेंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ २६॥
गर्भजोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले मिथ्यादृष्टि मनुष्य पर्याप्तकोंमें ही उसे उत्पन्न करते हैं, अपर्याप्तकोंमें नहीं उत्पन्न करते ॥ २६ ॥
पज्जत्तएसु उप्पादेंता अट्ठवासप्पहुडि जाव उवरिमुप्पा-ति, णो हेट्ठादो ॥ २७ ॥ ___ पर्याप्तकोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले गर्भज मिथ्यादृष्टि मनुष्य आठ वर्षसे ऊपरके कालमें ही उसे उत्पन्न करते हैं, नीचेके कालमें उसे नहीं उत्पन्न करते ॥ २७ ॥
एवं जाव अड्ढाइज्जदीव-समुद्देसु ॥ २८ ॥
इस प्रकारसे अढाई द्वीप-समुद्रोंमें मिथ्यादृष्टि मनुष्य उस प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥२८॥
मणुस्सा मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहिं पढमसम्मत्तमुप्पादेंति ? ॥ २९ ॥ मनुष्य मिथ्यादृष्टि कितने कारणोंसे उस प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ २९ ॥
तीहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुपादेंति- केइं जाइस्सरा, केई सोऊण, केई जिणबिंब दट्टण ॥ ३०॥
मिथ्यादृष्टि मनुष्य तीन कारणोंसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं- कितने ही मनुष्य जातिस्मरणसे, कितने ही धर्मोपदेशको सुनकर और कितने ही जिनप्रतिमाका दर्शन करके उसको उत्पन्न करते हैं ॥ ३०॥
'जिनबिम्बके दर्शनसे' यहां उसके अन्तर्गत जिनमहिमा (जन्माभिषेक महोत्सवादि) के दर्शनको भी ग्रहण करना चाहिये ।
देवा मिच्छाइट्ठी पढमसम्मत्तमुप्पादेंति ॥ ३१ ॥ देव मिथ्यादृष्टि प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ ३१ ॥ उप्पादेता कम्हि उप्पादेंति ? ॥ ३२ ॥
प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले देव मिथ्यादृष्टि किस अवस्थामें उसे उत्पन्न करते हैं ? ॥ ३२ ॥
पज्जत्तएसु उप्पादेंति, णो अपज्जत्तएसु ॥ ३३ ॥
प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले देव मिथ्यादृष्टि उसे पर्याप्तकोंमें ही उत्पन्न करते हैं, न कि अपर्याप्तकोंमें ॥ ३३ ॥
पज्जत्तएसु उप्पाएंता अंतोमुहुत्तप्पहुडि जाव उवरि उप्पाएंति, णो हेट्टदो ॥३४॥
पर्याप्तकोंमें भी प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले देव मिथ्यादृष्टि उसे अन्तर्मुहूर्त कालसे ऊपरके कालमें ही उत्पन्न करते हैं; न कि उससे नीचेके कालमें ॥ ३४ ॥
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