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२८८ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ९-२, ७३ बन्धस्थान है और वह द्वितीय तीसप्रकृतिक बन्धस्थानके समान प्रकृतिभंगवाला है। विशेषता यह है कि यहां एक उद्योत प्रकृतिको छोड़ देना चाहिए। इन द्वितीय उनतीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ॥ ७२ ॥
तिरिक्खगदि पंचिंदिय-पज्जत्तसंजुत्तं बंधमाणस्स तं सासणसम्मादिहिस्स ॥७३॥
वह द्वितीय उनतीसप्रकृतिक बन्धस्थान पंचेन्द्रिय और पर्याप्त नामकर्मसे संयुक्त तिर्यग्गतिको बांधनेवाले सासादनसम्यग्दृष्टि जीवके होता है ॥ ७३ ॥
तत्थ इमं तदियऊणतीसाए ठाणं जथा तदियतीसाए भंगो, णवरि उज्जोवं वञ्ज । एदासिं तदियऊणतीसाए पयडीणमेक्कम्हि चेव हाणं ॥ ७४ ॥
नामकर्मके तिर्यग्गति सम्बन्धी उक्त पांच बन्धस्थानोंमें यह तृतीय उनतीसप्रकृतिक बन्वस्थान है और वह तृतीय तीसप्रकृतिक बन्धस्थानके समान प्रकृतिभंगवाला है। विशेषता यह है कि यहां एक उद्योत प्रकृतिको छोड़ देना चाहिए। इन तृतीय उनतीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ॥ ७४ ॥
तिरिक्खगदिं विगलिंदिय-पज्जत्तसंजुत्तं बंधमाणस्स तं मिच्छादिहिस्स ।। ७५ ॥
यह तृतीय उनतीसप्रकृतिक बन्धस्थान विकलेन्द्रिय और पर्याप्त नामकर्मसे संयुक्त तिर्यग्गतिको बांधनेवाले मिथ्यादृष्टि जीवके होता है ।। ७५ ॥
तत्थ इमं छब्बीसाए हाणं-तिरिक्खगदी एइंदियजादी ओरालिय-तेजा- कम्मइयसरीरं हुंडसंठाणं वण्ण-गंध-रस-फासं तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुव्वी अगुरुअलहुअ-उवघादपरघाद-उस्सासं आदावुज्जोवाणमेक्कदरं थावर-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीरं थिराथिराणमेक्कदरं सुहासुहाणमेक्कदरं दुहव-अणादेज्जं जसकित्ति-अजसकित्तीणमेक्कदरं णिमिणणामं । एदासिं छब्बीसाए पयडीणमेक्कम्हि चेव द्वाणं ॥ ७६ ॥
नामकर्मके तिर्यग्गति सम्बन्धी उक्त पांच बन्धस्थानोंमें यह छब्बीसप्रकृतिक बन्धस्थान हैतिर्यग्गति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, आतप और उद्योत इन दोनोंमेंसे कोई एक, स्थावर, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर और अस्थिर इन दोनोंमेंसे कोई एक, शुभ और अशुभ इन दोनोंमेंसे कोई एक, दुर्भग, अनादेय, यशःकीर्ति और अयशःकीर्ति इन दोनों से कोई एक तथा निर्माण नामकर्म; इन छब्बीस प्रकृतियोंका एक ही भावमें अवस्थान है ।। ७६ ॥
यहां आतप-उद्योत, स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ और यशःकीर्ति-अयशःकीर्ति; इनके विकल्पसे सोलह (२४२४२४२=१६ ) भंग होते हैं।
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