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१,९-७, ३५] जीवट्ठाण-चूलियाए जहण्णट्ठिदिपरूपणा
[३०९ असंख्यातवें भागसे कम सागरोपमके दो बटे सात भाग ( 3 ) मात्र होता है ॥ २४ ॥
अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥ २५ ॥ - उक्त स्त्रीवेदादि प्रकृतियोंका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २५ ॥
आबाधूणिया कम्मद्विदी कम्मणिसेओ ॥२६॥
उक्त प्रकृतियोंकी आबाधाकालसे हीन जघन्य कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ॥२६॥
णिरयाउअ देवाउअस्स जहण्णओ हिदिबंधो दसवाससहस्साणि ॥ २७॥ नारकायु और देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध दस हजार वर्ष मात्र होता है ॥ २७ ॥ अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥ २८ ॥ नारकायु और देवायुका आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ २८ ॥ आवाधा ॥ २९ ॥ इस आबाधाकालमें नारकायु और देवायुकी कर्मस्थिति बाधारहित होती है ॥ २९ ॥ कम्मट्ठिदी कम्मणिसेओ ॥ ३०॥ नारकायु और देवायुकी कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषक होता है ॥ ३० ॥ तिरिक्खाउअ-मणुसाउअस्स जहण्णओ हिदिबंधो खुद्दाभवग्गहणं ॥३१॥ तिर्यगायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण होता है ॥ ३१ ॥ अंतोमुहुत्तमाबाधा ॥३२॥ तिर्यगायु और मनुष्यायुका जघन्य आबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है ॥ ३२ ॥ आबाधा ॥३३॥ इस आबाधाकालमें तिर्यगायु और मनुष्यायुकी कर्मस्थिति बाधारहित होती है ॥ ३३ ॥ कम्मठिदी कम्मणिसेओ ॥ ३४॥ तिर्यगायु और मनुष्यायुकी कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ॥ ३४ ।।
णिरयगदि-देवगदि-उब्वियसरीर-उब्बियसरीरअंगोवंगं णिरयमदि-देवगदिगाओग्गाणुपुब्बीणामाणं जहण्णगो द्विदिबंधो सागरोवमसहस्सस्स वे-सत्तभागा पलिदोवमस्स संखेजदिभागेण ऊणया ॥ ३५ ॥
नरकगति, देवगति, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीरअंगोपांग, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकोका जघन्य स्थितिबन्ध पल्योपमके संख्यातवें भागसे हीन सागरोपमसहस्रके दो बटे सात भाग (३) मात्र होता है ॥ ३५ ॥
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