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१,९-९, ७ ] जीवट्ठाण-चूलियाए पढमसम्मत्तुप्पत्तिकारणपरूपणा [३१५
सम्पूर्ण चारित्रको प्राप्त करनेवाला क्षपक वेदनीयकी स्थितिको बारह मुहूर्त, नाम और ग्रोत्र कर्मोकी स्थितिको आठ मुहूर्त तथा शेष कोंकी स्थितिको भिन्नमुहूर्त अर्थात् अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थापित करता है ॥ १६ ॥
॥ आठवीं चूलिका समाप्त हुई ॥ ८ ॥
९. णवमी चूलिया णेरड्या मिच्छाइट्ठी पढमसम्मत्तमुप्पादेति ॥ १ ॥ नारकी मिथ्यादृष्टि जीव प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ १ ॥ उप्पादता कम्हि उप्पादेति ॥ २ ॥ प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले नारकी जीव किस अवस्थामें उसे उत्पन्न करते हैं ? ॥ पज्जत्तएसु उप्पादेंति, णो अपज्जत्तएमु ॥३॥ वे पर्याप्तकोंमें ही उस प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, न कि अपर्याप्तकोंमें ॥ ३ ॥
पज्जत्तएसु उप्पादेंता अंतोमुहुत्तप्पहुडि जाव तप्पाओग्गंतोमुहुत्तं उवरिमुप्पादेंति, णो हेवा ॥४॥
पर्याप्तकोंमें प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाले नारकी अन्तर्मुहूर्तसे लेकर उसके योग्य अन्तर्मुहूर्तके पश्चात् सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, उससे नीचे नहीं उत्पन्न करते ॥ ४ ॥
__ अभिप्राय यह है कि पर्याप्त होनेके प्रथम समयसे लेकर जब तक तत्प्रायोग्य अन्तर्मुहूर्त काल व्यतीत नहीं होता है तब तक जीव उसके योग्य विशुद्धिके सम्भव न होनेसे प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।
एवं जाव सत्तसु पुढवीसु णेरड्या ॥५॥
इस प्रकार प्रथम पृथवीसे लेकर सातों पृथिवियोंमें नारकी जीव प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥५॥
णेरड्या मिच्छाइट्ठी कदिहि कारणेहि पढमसम्मत्तमुप्पादेंति ? ॥६॥ नारकी मिथ्यादृष्टि जीव कितने कारणोंके द्वारा प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥६॥ तीहि कारणेहिं पढमसम्मत्तमुप्पादेंति ॥ ७॥ नारकी मिथ्यादृष्टि जीव तीन कारणोंके द्वारा प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं ॥ ७ ॥
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