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३०२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ९-६, ७ सादावेदणीय-इत्थिवेद-मणुसगदि--मणुसगदिपाओग्गाणुपुग्विणामाणमुक्कस्सओ द्विदिबंधो पण्णारससागरोवमकोडाकोडीओ ॥ ७॥
सातावेदनीय, स्त्रीवेद, मनुष्यगति और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्म; इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पन्द्रह कोड़ाकोडि सागरोपम मात्र होता है ॥ ७ ॥
पण्णारस वाससदाणि आबाधा ॥ ८॥
उक्त सातावेदनीय आदि चारों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिका आबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष होता है ॥ ८॥
आबाधूणिया कम्मविदी कम्मणिसेगो ।। ९ ॥ उक्त कर्मोकी आबाधाकालसे हीन कर्मस्थिति प्रमाण उन कर्मोंका कर्मनिषेक होता है । मिच्छत्तस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो सत्तरि सागरोवमकोडाकोडीओ ॥.१० ॥ मिथ्यात्व कर्मका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोडाकोडि सागरोपम मात्र होता है ॥ १० ॥ सत्त वाससहस्साणि आबाधा ॥ ११॥ मिथ्यात्व कर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका आबाधाकाल सात हजार वर्ष होता है ॥ ११ ॥
आबाधूणिया कम्मट्ठिदी कम्मणिसेगो ॥ १२॥ . मिथ्यात्व कर्मकी आबाधाकालसे हीन कर्मस्थिति प्रमाण उसका कर्मनिषेक होता है ॥१२॥ सोलसण्हं कसायाणं उक्कसगो ट्ठिदिबंधो चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीओ ॥१३
अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि सोलह कषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध चालीस कोडाकोड़ि सागरोपम मात्र होता है ॥ १३ ॥
चत्तारि वाससहस्साणि आबाधा ।। १४ ॥
अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थितिका आबाधाकाल चार हजार वर्ष होता है ॥ १४ ॥
आवाधूणिया कम्महिदी कम्मणिसेगो ॥१५॥ सोलह कपायोंकी आबाधाकालसे हीन कर्मस्थिति प्रमाण उनका कर्मनिषेक होता है ॥१५
पुरिसवेद-हस्स-रदि-देवगदि-समचउरससंठाण- वज्जरिसहसंघडण-देवगदिपाओग्गाणुपुव्वी- पसत्थविहायगदि-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसकित्ति-उच्चागोदाणं उक्कस्सगो द्विदिबंधो दस सागरोवमकोडाकोडीओ ॥१६॥
पुरुषवेद, हास्य, रति, देवगति, समचतुरस्रसंस्थान, वज्रवृषभनाराचसंहनन, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशःकीर्ति और उच्चगोत्र; इन प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध दस कोडाकोड़ि सागरोपम मात्र होता है ॥ १६ ॥
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