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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
५. पंचमी चूलिया
तत्थ इमो तदिओ महादंडओ कादव्वो भवदि ॥ १ ॥
उन तीन महादण्डकोंमेंसे यह तृतीय महादण्डक करने योग्य है ॥ १ ॥
पंचन्हं णाणावरणीयाणं णवण्हं दंसणावरणीयाणं सादावेदणीयं मिच्छत्तं सोलसहं कसायाणं पुरिसवेद-हस्स-रदि-भय- दुगुंछा । आउगं च ण बंधदि । तिरिक्खगदिपंचिदियजादि-ओरालिय- तेजा - कम्मइय सरीर-समचउर ससंठाण--ओरालियंगोवंग --वजरिसहसंघडण वण्ण-गंध-रस-फार्स तिरिक्खगदिपाओग्गाणुपुव्वी अगुरुअलहुव-उवघाद-परघादउस्सासं । उज्जीवं सिया बंधदि, सिया न बंधदि । पसत्थविहायगदि-तस - बादर-पज्जत्तपत्तेयसरीर-थिर- सुभ-सुभग-सुखर-आदेज- जसकित्ति - णिमिण - णीचागोद- पंचण्हमंतरायाणं एदाओ पडीओ बंधदि पढमसम्मत्ताहिमुही अधो सत्तमा पुढवीए रइओ || २ || प्रथमोपशमसम्यक्त्वके अभिमुख हुआ अधस्तन सातवीं पृथिवीका नारकी मिथ्यादृष्टि जीव पांचों ज्ञानावरणीय, नवों दर्शनावरणीय, सातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी क्रोध आदि सोलह कषाय, पुरुषवेद, हास्य, रति, भय और जुगुप्सा; इन प्रकृतियोंको बांधता है । किन्तु आयु कर्मको नहीं बांधता है । तिर्यग्गति, पंचेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकशरीर अंगोपांग, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुअलघु, उपघात, परघात और उच्छ्वास; इन प्रकृतियोंको बांधता है । उद्योत प्रकृतिको कदाचित् बांधता है और कदाचित् नहीं बांधता है । प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशः कीर्ति, निर्माण, नीचगोत्र और पांचों अन्तरायकर्म; इन प्रकृतियोंको बांधता है ॥ २ ॥
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[ १, ९-५, १
वह चार प्रकार के आयु कर्मके साथ जिन अन्य प्रकृतियोंको नहीं बांधता है वे ये हैंअसातावेदनीय, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, अरति, शोक, नरकगति, मनुष्यगति, देवगति, एकेन्द्रियजाति, द्वीन्द्रियजाति, त्रीन्द्रियजाति, चतुरिन्द्रयजाति, वैक्रियिकशरीर, आहारकशरीर, न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थान आदि पांच संस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, आहारक शरीरांगोपांग, वज्रनाराचसंहनन आदि पांच संहनन, नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, आतप, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारणशरीर, अस्थिर, अशुभ, दुर्भग, दुःखर, अनादेय, अयशः कीर्ति, तीर्थंकर और उच्चगोत्र |
॥ पांचवीं चूलिका समाप्त हुई || ५ ||
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